बुधवार, 29 जुलाई 2015

मास्टर ऑफ़ पपेट्स

ये अपनी चालो में पूरी तरह से कामयाब जा रहा है ,
हम इसकी हर चाल में फंस रहे है।
हम का मतलब सिर्फ विरोधी ही नहीं।
इसके भक्त भी इसकी हर चाल में फंस रहे है।
ये दोनों को नचा रहा है।

आवाम को उलझा कर मुल्क को बेचने का हुनर है इसके पास
तभी तो इसे चुना गया है।
आँखे खोलो। ……दिमाग खोलो।
और अगली चाल का इन्तेजार करो
इसका हर गेम , हर चाल ..

मुल्क की तिज़ारत पर खामोशी से पर्दा डाल रहा है।
चाल को समझो
या फिर अपनी साम्प्रदायिक कुंठा के चरमोत्कर्ष स्खलन का मजा लेते रहो
देश बर्बादी की और दौड़ रहा है.