tag:blogger.com,1999:blog-7798854680453498725.post5793917621026031678..comments2023-03-25T03:41:54.826-07:00Comments on विप्लव ! Vishvnath Dobhal: सामन्तवाद की खिचड़ी पूंजीवादी अचार के साथ.vishvnathhttp://www.blogger.com/profile/10418889801593485106noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-7798854680453498725.post-12699302360926499192013-04-30T07:29:11.928-07:002013-04-30T07:29:11.928-07:00उपभोक्तावादी संस्कृति उत्पादन प्रक्रिया को बिना पू...उपभोक्तावादी संस्कृति उत्पादन प्रक्रिया को बिना पूँजीवादी मूल्यों और ढाँचे को तोड़े चालू रखने और विकसित करने में सहायक होती है ? लेकिन तीसरी दुनिया के देशों में इस संस्कृति का असर इसके ठीक विपरीत होता है । भारत जैसे तीसरी दुनिया के के देशों में जहाँ साम्राज्यवादी सम्पर्क से परम्परागत उत्पादन का ढाँचा टूट गया है और लोगों की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के लिए उत्पादन के तेज विकास की जरूरत है , वहाँ उपभोक्तावाद के असर से विकास की सम्भावनाएँ कुंठित हो गयी हैं । पश्चिमी देशों के सम्पर्क से इन देशों में एक नया अभिजात वर्ग पैदा हो गया है जिसने इस उपभोक्तावादी संस्कृति को अपना लिया है ।और इस उपभोक्तावाद का भरपूर फायदा पश्चिमी देश उठा रहे है !Nageshwar Singh Baghelhttps://www.blogger.com/profile/02450600826489836822noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7798854680453498725.post-73799039641904128932013-04-30T07:26:02.302-07:002013-04-30T07:26:02.302-07:00आपका ब्लॉग पढ़ा बहुत अच्छा लगा ..अब सवाल ये है की आ...आपका ब्लॉग पढ़ा बहुत अच्छा लगा ..अब सवाल ये है की आखिर उपभोक्ता वादी संस्कृत का जन्म हुआ क्यों ? कही दिखावा तो इसका मुख्या कारन नहीं है ?आपने ब्लॉग में एक बात और बहुत अच्छी लिखी है है की ..दिन में पूजा ,कथा और साम को केक फिर रात को जाम से जाम टकरायेगे और फिर संस्कृत की दुहाई देगे ..!Nageshwar Singh Baghelhttps://www.blogger.com/profile/02450600826489836822noreply@blogger.com