सोमवार, 29 अप्रैल 2013

सामन्तवाद की खिचड़ी पूंजीवादी अचार के साथ.

                                            सामन्तवाद की खिचड़ी  पूंजीवादी  अचार के साथ.
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कल ही मेरे के दोस्त के बेटे का जनम दिन था , सन्डे   का दिन था तो उसें मुझे सबह सुबह बुला लिया और मुझे लेकर बाजार निकल पड़ा सामान लेने , मैंने पूछा की क्या सामान लाना है भाई .
उसने पहले पूजा का सामान ख़रीदा फिर एक केक और ये सब सामान घर पर रखने के बाद बोला "चल यार ठेके से बोतल ले आते है शाम के लिए ". तो सुबह सुबह पंडत जी आये ,पूजा हुई और शाम को केक काटा गया, जब बच्चे और घर की महिलाए रात में खाना खा रहे थे तो हम सारे दोस्त ऊपर छत पर आ गए और फिर दारूबाजी शुरू हो गयी।
सुबह को पूजा, और शाम को केक काट कर डांस करना , संस्कृति का ये घालमेल सीधे सीधे बाजारवाद और उपभोक्तावाद से जन्मा है , जहा पर लोगो को एक तरफ अपने को आगे दिखाने की होड़ के लिए  पूंजीवादी सभ्यता के लगभग हर गैर जरुरी उत्पादों को खरीद कर अपने आप को छदम सुख देता है और दूसरी तरफ भगवान् व पूजा के सारे कर्मकांड करके अपने तथाकथित पापो का संतुलन भी बनाए रखता है। येही कारण है की आज जीतनी भीड़ बाबाओ के समागमो में देखने को मिलती है , उतनी ही अनुपातित भीड़ आपको KFC , मक्डोनाल्ड और पिज्जा हट जैसी जगहों में भी मिल जायेगी।
उपभोक्ता वादी संस्कृती के चलते आज हमारे शादी ब्याह ,जन्मदिन ,मुंडन ,सारे अनुष्ठान  एक शो ऑफ कि चीज बन कर रेह गये है .लंबे लंबे खाने के मेनु, हर शादी मे चार-पांच फन्क्शन , हर फंक्शन के लिये अलग अलग कपडो कि तैयारीया। बेटी या बेटे के घरवाले अपनी तमाम मेहनत कि कमाई ओर कभी कभी तो उधार लेकर ये सब बे-जरुरती इंतेजामात करके समाज मे अपने दंभ को दर्शाते है कि देखो मेरे पास भी अच्छा खासा पैसा है, लेकीन कही अंतर्मन मे वो इस दिखावे को फिजूलखर्ची ओर अपना नुकसान भी मानता है . ओर अंततः ये कुंठा बाहर निकलती है घरेलू तनाव ओर बाद मे पत्नी ओर बच्चो के साथ कलह मे .
असल में ये हमारा भारतीय समाज एक बच्चा है जी। ये समाज एक त्रिशंकु अवस्था में झूल रहा है।
इसकी हालत एक बच्चे जैसी है , वो बच्चा जिसे कोई एक झुनझुना लाकर देदे तो वो उसे बजाने लगता है , फिर एक गाडी दे दे तो वो उसपर मस्त होकर चलने लगता है, और फिर जब और बच्चे मिलते है तो वो उन्हें अपने खिलौने दिखाने के लिए रोमांचित हो जाता है।
हमर समाज भी कुछ ऐसा ही है, हमें लगता है की हम प्रगति कर रहे है ,लेकिन बिना सोचे समझे की ये वाकई प्रगति है या कुछ और .
जब बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपना धंधा सँभालने के लिए सस्ते कामगारों की जरुरत पड़ी तो हमें MBA और बिजनेस स्कूल खुलवा दिए और झुनझुना पकड़ा दिया , जब उन्हें व्यापार बढाने के लिए संचार तंत्र की जरुरत पड़ी तो इन्टरनेट और मोबाइल का झुझुना पकड़ा दिया , ,,,,और अब वो खिलौने बेकार हो गए तो उनका उपयोग बता कर वो अभी भी ये हमें बेचे जा रहे है। इस धरती पर मानव समाज के विकास का हर जगह अलग अलग अवस्थाओं में सामान विकास हुआ है , इंगलैंड वो पहला देश था जहा मशीनी सभ्यता सबसे पहले पनपी और अपनाई गयी , जब मशीन आई तो उसके चलाने वाले और मालिको के दिमाग भी इससे अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की जुगत में लग गए , इसी के तहत उन्होंने सबसे पहले अन्य देशो में मशीनी सभ्यता के विकास की प्रारंभिक अवस्था में ही भ्रूण हत्या करनी शुरू कर दी और उन्हें अपना औपनिवेश घर बना कर वहा  का कच्चा माल लूटना शुरू कर दिया। भारत में भी अंग्रेजो के आने के शुरूआती दिनों में बंगाल में जूट उद्योग लगने शुरू हो गए थे जिसे इन्होने बर्बाद कर दिया।
इसी प्रकार पश्चिम के जिन जिन देशो में औध्गिक सभ्यता विकसित हुई उन्होंने ज्यादा से ज्यादा उपनिवेश हड़पने की कोशिश करनी शुरू कर दी , और इसकी परिणिति आखिर में विश्व युद्ध पर जाकर ख़तम हुइ.
आज के समय में माहौल कुछ ऐसा बना दिया गया है की लोग मोबाइल, मॉल कल्चर ,इन्टरनेट और कंप्यूटर को ही प्रगति का पैमाना मानने लगे है , इस बीच अगर आप गेंहू ,चावल और दाल उगाने वाले किसानो की बात करो तो इसे कोई तवज्जो नहीं देते।   लेकिन सोचना ये चाहिए की इन सब चीजो का इस्तेमाल करते हुए भी जब आप हर एक या दो घंटे में कुछ खाने के लिए खोजते हो तो वो खाने की चीज गेंहू ,चावल या किसी अन्न से ही बनी होती है जिसे हमारे किसान पैदा करते है , चाहे आप KFC में खाए या हल्दीराम के आउटलेट में , आप किसान की मेहनत का ही खाते है ...इन्टरनेट आपकी भूख नहीं मिटा सकता . आज भी माल बेचने के लिए पूंजीवाद एक नहीं दो नहीं बल्कि हर दिशा से हमला करके आपको माल खरीदने के लिए मजबूर करता है ,ये कडिया कैसे आपस में जुड़ी  हुई है ...आइये इसका एक नमूना देखते है .
टीवी और सिनेमा के माध्यम से गंदी फिल्मे और सीरियल से नौजवानों में ये भाव पनपा है की आज के युग में गर्ल फ्रेंड या बॉय फ्रेंड का होना जरूरी है .
अब जब प्रेमी या प्रेमिका होगी तो आपको बहार डेटिंग भी जानना पड़ेगा ,,,तो इसके लिए मॉल और मार्केट खुले पड़े है .
अब मॉल और मार्किट से सामान भी खरीदना पड़ेगा एक दुसरे को गिफ्ट देने के लिए,,,,,तो इसके लिए लवर्स डे , किस डे , चोकलेट डे और ना जाने क्या क्या डे बनाए गए .
अब इस संस्कृति को क्या कहा जाए जो की सिर्फ माल बेचने के लिए कृत्रिम रूप से बनायी गयी है . ये संस्क्रती जो की अभी आपको माल खरीदने के लिए नए नए भगवान् भी दे देती है, क्रिकेट के भगवान् , सिनेमा के भगवान् वैगैहरा वैगैहरा,   ताकि आप उनके द्वारा विज्ञापित सामानों को ख़रीदे और इसी संस्कृति का विभत्स रूप आपको पश्चिमी दुनिया के कई देशो में मिल जायेगा जो की अपने युद्ध सामग्री और हथियार बेचने के लिए अंधराष्ट्रभक्ति तक विज्ञापन के रूप में दिखाते है .
फिलहाल हमारे त्रिशंकू समाज के खिचड़ी संस्कार तब तक ऐसे ही चलते रहेंगे जब तक इन्हें रचने वालो का समूल नाश ना होगा / या किया जाएगा .
ओह्ह बताना भूल गया ...मेरा जिगरी दोस्त अश्मित आज सुबह सुबह मदिर गया था , मत्था टेकने  , एक बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी में इंटरव्यू अटेण्ड करने के लिए . अभी अभी उसका  फ़ोन आया है की उसके सारे इंटरव्यू राउंड क्लियर हो गए और अगले महीने जॉइनिंग है। ....उसने आज शाम बियर पार्टी के लिए बुलाया है .

बब्बाय .....एन्जॉय कैपिटलिज्म ...

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

सॉरी श्री राम .... I am not convinced

सामंतवादी चरित्रों का पूजन पूरी तरह जातीय दंभ और शाशक वर्ग की सत्ता बनाए रखें के लिए समाज को सुनाता जाता रहा है .
ये वाकई अद्भुत और विचार करने योग्य प्रशन है की आज तक कोई भी भगवान् वर्ण व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर घोषित समाज के घर पैदा क्यों नहीं हुआ ?
ये सभी चरित्र या तो ब्राह्मण या फिर ठाकुर परिवारों में ही पैदा हुए. श्री राम ,परशुराम ,कृष्ण, बलराम ,और सभी काल्पनिक चरित्र पूरी तरह या तो शाशक वर्ग में पैदा हुए और उनके साथ खड़े नजर आते है या फिर उनका साथ देते हुए तथाकतित धर्म युद्ध लड़ने के नाम पर विद्रोह को दबाने के लिए लड़ते है । राम , परशुराम और कृष्ण द्वारा किये गए सारे कृत्य इधर उधर से लीपा पोती वालो तथ्यों और तर्कों द्वारा धार्मिक घोषित किये जाते रहे है . बाली का वध हो या शम्बूक की ह्त्या , महाभारत का युद्ध हो या परशुराम का नरसंहार , हिन्दुओ की तथाकथित उच्च जातियाँ येन केन प्रकारेण इन सभी कृत्यों को धर्म रक्षा के लिए बताती है .
जब प्रणय निवेदन कर रही स्त्री स्वर्णनखा की नाक काट देते है और दोंनो भाई मिल कर उससे चुहलबाजी करते है तब ना जाने वो कौन से धर्म का पालन कर रहे होते है , और खुद रामायण में सैकड़ो बार "महाज्ञानी " " महात्मा"  "महा विद्वान् " जैसे शब्दों से अलंकृत रावण की बात आती है तो वो अधर्मी और पापी घोषित किया जाता है. जबकि राम कथा से जुड़े सारे ग्रंथो में ये लिखित रूप से मौजूद है की रावन ने कभी सीता पर बल प्रयोग नहीं किया (अपहरण को छोड़ कर ) और हमेशा उससे मिलने जाते हुए अपने पूरे परिवार और धर्मपत्नी मंदोदरी के साथ ही गया.  सीता माता और स्त्री पात्रों के साथ उसके व्यवहार को इतना उत्तम दिखाया गया है कि कथा के नायक श्री रामचंद्र जी का क़द भी उसके सामने छोटा पड़ जाता है । क्षत्रिय कभी भागते हुए शत्रु को नहीं मारता तो फिर भी बाली वध को ना जाने किस द्रष्टि से धार्मिक ठहराया जाता है ?महाराज बाली का तो वो प्रताप था की रावन जैसे को भी अपनी बगल में दबा के सिक्स मंथ तक घुमते रहे, और बोले बेटे रावण तू तो चीज क्या है ,और राम ने महाराज बाली को एक बठला हाउस स्टाइल में एक फर्जी मुठभेड़ में धोखे से मारा, रामभक्त बाली के दुसरे की शक्ति को खींच लेने के वरदान के कारण राम का ये कृत्य सही ठहराते है, तो कुछ पढ़े लिखे अंध भक्त ये कहते है की बाली ने अपने छोटे भाई का राज्य और पत्नी छीन कर अधर्म किया था .क्या श्री राम उसके इस अधर्म के लिए उसे सामने से ललकार कर सजा नहीं दे सकते थे,??? या उन्हें डर था की कही बाली उनका ही शिरेच्छेद ना कर डाले ? फिलहाल बाली को मारने के बाद उन्होंने सुग्रीव की पत्नी रोमा की अग्नि परीक्षा क्यों नहीं करवाई ,जबकि रोमा तो बाली के साथ मजबुरी वश लेकिन स्वेच्छा से रही थी उसके भरष्ट होने की ज्यादा सम्भावना थी,
और अगर नही करवाई अग्नी परीक्षा तो फिर सीता के लिए अलग कोड ऑफ़ कंडक्ट क्यों अपनाया गया ??? इसलिए सारी बात कि एक बात काल्पनिक उपन्यास में जो मर्जी भये वो लिख दो, सदियो कि मानसिक गुलामी वाले लोग भरे पडे किसी भी काल्पनिक कहानी पर विश्वास करने के लिए .......आखिर एकता कपूर ऐवैइ थोड़े पीट रही है पैसा काल्पनिक कहानिया दिखा दिखा कर।
आग में गुज़रने की परीक्षा औरत से कोई बुद्धिजीवी नहीं लेता और झूठे आरोप पर कोई पति और राजा अपनी पत्नी और अपने नागरिक के मानवाधिकारों का हनन नहीं करता और गर्भावस्था में तो आज का पतित समाज भी किसी बुरी औरत तक के साथ बदसुलूकी की इजाज़त नहीं देता । तब मर्यादा की स्थापना के लिए जन्मे सदाचारी श्री रामचंद्र जी एक सती के साथ उसकी इच्छा और न्याय के विपरीत उसका त्याग क्यों कर दिया जबकि खुद उनके भाई लछमन और बाकी घरवाले रोकते ही रह गए।
इस काल्पनिक कथा में दलितों और समाज की निम्न वर्ग को भी बस राम के सेवक के रूप में ही दिखाया गया,,,,,चाहे वो शबरी प्रकरण हो या केवट की कथा , या फिर खुद वाल्मीकि का चरित्र भी उनकी कपोल कल्पित प्रशंशा में ही लगा रहा .
युद्ध का मतलब ही होता है हिंसा , मारकाट, हजारो विधवाए इस तरफ हुई और हजारो विधवाए उस तरफ हुई, निर्दोष लोगो की ह्त्या और दुर्दांत आर्थिक और सामाजिक संकट . और एक अवतार के लिए ये भी सब धर्म युध्ह घोषित कर दिया गया.  अंततः सारे धार्मिक ग्रंथो की तरह ये काल्पनिक कथा भी शाशक वर्ग के महिमामंडन से भरी हुई है जिसमे नैतिक और अनैतिक कामो का  चरित्रों के हिसाब से और वर्ण व्यवस्था के प्रतिनिधित्व करते चरित्रों को ध्यान में रख कर अर्थ निकाले गए है .

गलती मर्यादा पुरषोत्तम राम की नहीं है ...गलती या कहे षड्यंत्र तो उन शोषण कारी शक्तियों का है जो आज भी इन सामंती गपोड़ ग्रंथो को प्रासंगिक बता कर अशिक्षा , अंधभक्ति और शोषण आधारित सामाजिक और जातीय ढांचे को बनाये रखना चाहते है ......ताकि इन्हें अपनी सुविधानुसार हर अनैतिक काम को सही ठहराने के लिए आधार मिलता रहे .

सोमवार, 15 अप्रैल 2013

सब गुजरात से आता है

और मैं ये कहना चाहूँगा मित्रो .....
की आप जो चाय पीते हो ..... ..वो गुजरात से आती है
दिल्ली मेट्रो ............................गुजरात से आती है
आप जो प्याज खाते हो ...........वो गुजरात से आता है
आलू , भिन्डी, टमाटर , चुकंदर,  बन्दर,  केला,  सिंघाड़ा,  ककड़ी,  गंडीरी,  नारियल, कददू , घीया ,कटहल ...............................................सब गुजरात से आता है .
शिमला मिर्च , कश्मीरी पुलाव, मटर पनीर , पनीर टिक्का , कढाई पनीर, पनीर दो प्याजा , पनीर पसंदा ................................................सब गुजरात से आता है .
रम, जिन, बीयर, व्हिस्की, देशी ,ठर्रा ,मसाला बोतल ,अध्हा पव्वा , चिलम , गांजा, बीड़ी , भांग, धतूरा ......................................सब गुजरात से आता है .
कांग्रेस पार्टी इज आल अबाउट कमीशन ...................
एंड बीजेपी इज अ पार्टी ऑफ़ क*नी's सन .............
म्हारो गुजरात .........भाइब्रेन्ट गुजरात ..................
गुजरात माँ आपका स्वागत छे ........ ...................
मणे परधान मंतरी बणाओ....मणे भारत माँ को कर्जा उतारानो छे .