रविवार, 30 नवंबर 2014

बच्चे


बच्चे सर्दियों की धुप की तरह होते है
बच्चो को अच्छे से महसूस करना जरूरी है
बच्चो को  प्यार करना जरूरी है
हो सकता है की आपका बच्चा
पढ़ाई लिखाई या किसी कला में बहुत तेज हो
हो सकता है की वो इन सबमे साधारण हो
हो सकता है की आपका बच्चा इनमे से कुछ भी अच्छा ना करता हो
बच्चो से किसी भी अच्छे या  साधारण की उम्मीद , या खराब करने का डर मत पालो 
किसी भी पढ़ाई , खेलकूद या कला में निपुण हो जाने को प्यार का पैमाना मत बनाना
बच्चो को प्यार देने की हर शर्त , बेशर्त होनी चाहिए !



सोमवार, 21 अप्रैल 2014

सकल ताड़ना के अधिकारी

गुजरात में सात दिन पहले हेलोदर गाँव में सरेआम चौराहे पर ज़िंदा जला दी गयी दलित महिला के नाम *****************************



बिना जाने समझे
अब तक तुमने मेरे बारे में अपनी राय बना ली होगी।
जैसे बनायी थी एक सफ़ेद चलती बस में इज्जत लुटती उस लड़की के लिए।
चालू थी , वर्ना इतनी रात में क्या कर रही थी अकेले लड़के के साथ ?

इसी तरह। अब  चाहो तो तुम मेरे बारे में भी अपनी राय बना सकते हो .
हो न हो ये दलित औरत भी शर्तिया ही ....  रही  होगी कोई छिनाल, रण्डी ,चालू ,मुँहजोर ?
या कुछ और नाम दे दो , जो भी तुम लोगो ने सीखा है अपनी महान संस्कृति से.
लेकिन भूलना मत ...
व्यवस्था, जात और रवायतों की तीन तीन परतों  में लिपटे ..
औरत के शोषण से भरे ग्रंथो के सूत्रों की जब बखियां उघेड़ी जाएंगी।
उस दिन तुम्हारी वर्णव्यवस्था के मर्दवादी होने की पोल भी खुल के रहेगी।
क्योंकि बख्शा तो तुमने सीता को भी नहीं था।

बुधवार, 9 अप्रैल 2014

रहनुमा

 ज्यादा इतराओ मत , ज्यादा खुश मत होओ।
ये जो छदम विकास कि गपोड़ कथाओ पर तुम इठला रहे हो
इनकी असलियत तुम भी जानते हो। .

तुम्हारी इस शालीनता के पीछे छिपे
जो नफरत के समंदर  उछल रहे है
वो साफ़ साफ़ दिखते है

एक मज़हबी नफ़रत का ज़हर जो तुम्हारे दिमाग में है
उसको पनाह देने वाला रहनुमा आज उफान पर है
तुम उसके दम पर ही कूदते हो ना ?

लेकिन तुम भूल रहे हो। .
वो रहनुमा नहीं सिर्फ एक पालतू कुत्ता है। 
और उसके मालिको को सिर्फ मुनाफ़ा दिखता है।

उस मुनाफे में जब कमी आएगी तो वो पहला धक्का तुम्हारे रहनुमा को मारेंगे
और फिर तुम्हारी रगो में बहते लहू को निचोड़ कर अपना मुनाफा खींच लेंगे
बिना ये जाने के तुम हिन्दुआन हो या मुल्ले!

उस दिन तुम्हारा रहनुमा अपनी बेरोजगारी पर आंसू बहा रहा होगा।

बुधवार, 22 जनवरी 2014

तुम्हे बुरा नहीं मानना चाहिए।



धरना और अनशन जनतंत्र के लिए अच्छा नहीं।
किसानो का जल सत्यागृह जनतंत्र के लिए अच्छा नहीं।
आदिवासियो का जमीन और पेड़ो से लिपट कर विरोध करना जनतंत्र के लिए अच्छा नहीं।
हिंसात्मक प्रदर्शन किया तो हम आपको असामाजिक और अराजक घोषित कर देंगे।
और हथियार उठा लिए तो हम आपको देशद्रोही घोषित कर देंगे।

क्योंकि हमने तुम्हे आज़ादी दी है। .
मैकडोनाल्ड और के ऍफ़ सी में खाने कि आज़ादी
एयर कंडीशन मॉल में आलू टमाटर खरीदने कि आज़ादी
पांच सौ रुपये कि टिकट लेकर फ़िल्म देखने कि आज़ादी।
आई पी एल और बिग बॉस जैसी चीजे देखने कि आज़ादी।
हमने दिल्ली कि सड़ी गर्मी में आपको आइस स्केटिंग करने कि आज़ादी दी है।
हमने शहर शहर में वाटर पार्क और फन सिटी में हुल्लड़बाजी करने कि आज़ादी दी है।
हुक्का बार खुलवाये ,
गाँव गाँव तक दारु पहुचाई ,
मसाज पार्लर खुलवाये,
एक फ़ोन पर एस्कार्ट सर्विस उपलब्ध करवायी,
मात्र 20 हजार में थाईलैंड घुमक्कड़ी के पैकेज दिलवाये,
दुनिया भर कि महँगी महँगी गाड़ियो से बाजार भर दिए,
वैष्णो देवी दर्शन के लिए हेलिकॉप्टर लगवाया,
तिरुपति दर्शन के लिए वी आई पी टिकट उपलब्ध करवाया !

अब क्या चाहते हो तुम लोग ??
पूरा बाजार खुल्ला पड़ा है तुम्हारे लिए।
अगर है प्रतिभा , अगर है योग्यता तो कमाओ और इस आज़ादी के मजे लूटो।
लेकिन इस आज़ादी का विरोध किया तो भाई हमें भी तुम्हे रोकना तो पडेगा ही।
इसमें तुम्हे बुरा नहीं मानना चाहिए।