गुरुवार, 29 नवंबर 2012

बीजेपी समर्थको की दोगली मानसिकता और अपरिपक्वता

  • बीजेपी समर्थको की दोगली मानसिकता और अपरिपक्वता की पोल खोल -
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    ज्यादा दिन नहीं हुए,,,बस आज से 7-8 महीने पहले की ही बात है,,आप किसी भी सोसल साईट पर अगर कुछ भी अन्ना-केजरीवाल और उनके आन्दोलन के बारे में सवाल उठाते थे तो आपको शायद तमाम गालिया सुनाने को मिलती थी।।..कांग्रेसी कुत्ता, मुल्ला,पाकिस्तानी , देशद्रोही आदि आदि,,,
    ये वो लोग थे जिनके सबकांसियास माइंड में शायद अन्ना के आन्दोलन का मतलब कांग्रेस का नुक्सान और बीजेपी का फायदा दिख रहा था।।
    लेकिन जैसे जैसे अन्ना और उनकी टीम ने बीजेपी को घेरना शुरू किया ...इनके सुर एकदम से बदल गए,,,,केजरीवाल को येही लोग देशभक्त बताते थे,,,और जैसे ही केजरीवाल ने बीजेपी कि पोल खोली इन्होने उसे भी अलंकृत भाषा से नवाजना शुरू कर दिया,,,,,खुजलीवाल , खुजलीवाला कुत्ते आदि आदि,,,

    और आगे बढे तो इन्होने फिर जेठमलानी और कटियार को भी लपेटा आजकल गुरुमूर्ति और वैद्य को भाषाई बलात्कार का शिकार बना रहे है।।।(हां इनकी खिलाफत का कारण ये लोग भले ही धार्मिक आलोचना बताते हो लेकिन मूल में वोही भाव है की बीजेपी का नुकसान न होने पाए ) शायद आने वाले time में ये रामदेव को भी गद्दार या कंग्रेस्सी बताएँगे,,,बस रामदेव का इनके खिलाफ मुह्ह खोलने की देर है ..

    ये सब वो लोग थे जिनका कोई भी सैधांतिक विचाराधार न होकर सिर्फ बीजेपी और मोदी की अंधभक्ति से सरोकार था,,,ये लोग आज भी नहीं समझ पाए की देश की असली समस्या देशी विदेशी पूँजी द्वारा भारत के सस्ते श्रम और प्राक्रतिक स्रोतों की लूट ही मुख्य कारण है,,,,,और कांग्रेस ,बीजेपी और अन्य दल सिर्फ इनके दलालों के रूप में काम करते है,,,,

    इन लोगो की अंधभक्ति को और भी ज्यादा बल फासिसम विचारों से तराशा जाता है,,,हिन्दू मुस्लिम पाकिस्तानी और दलित अंतरविरोधो के द्वारा,,,,,ताकि जनता आपस में ही लडती रहे और पूंजीपतियों की लूट बदस्तूर जारी रहे,,,,कांग्रेस आये या बीजेपी,,,,इन्हें कोई फरक नहीं पड़ने वाला।
    ,क्योंकि आज कांग्रेस ,बीजेपी नहीं एक सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन नवजनवादी क्रांति की जरुरत है।।।

बाला साहेब


किसी की भी मौत के बाद उसके बारे में बुरा बोलना गलत होता है,,,,,
लेकिन  आप जब किसी की विवेचना करते है तो उसकी तुलना दूसरो के गलत कामो से करके आप उसके गलत कामो को नहीं छुपा सकते ...
आप वीरप्पन, प्रभाकरन ,दाउद , और ना जाने कितने लोगो की जिंदगी पढ़ कर देख लीजिये ,,,वो सब के सब प्रत्यक्श या अप्रत्क्यक्ष रूप से कोई न कोई भलाई का काम करते थे,,,,यहाँ तक की कल ही मरा पोंटि चड्ढा भी 1000 गरीब परिवारों को पालता था, वो हमारे ही इलाके से आता है,,,,और उसके पूरे खानदान की कर्तुते हम जानते है,,,

बाला साहेब के किये गए अच्छे कामो को आप इस कसौटी पर देखिये की उन्होंने सम्पूर्ण भारतीय मानव समाज में किस विचारधारा को पनपाया ,,,,,और उससे किसका भला होने वाला है,,,,उसने किस देशी या विदेशी पूंजीपति को भारत के संसाधनों की लूट के लिए रोका,,,,,,जो की इस मुल्क की गरीबी का में कारण है,,,
मुसलमानों को तो छोडिये यहाँ तक की उन्होंने हिन्दुओ को भी जात पात और क्षेत्र के नाम पर बांटने में कोई कसर नहीं छोड़ी .यहाँ तक की अपने अंतिम भाषण में भी उन्होंने सिर्फ मराठी राग ही अलापा ,,,उन्हें असल में इस देश से कुछ लेना देना ही नहीं था,,वो सिर्फ मराठी राजनीती करके अपना घर चलाते थे,,,और इसे जस्टिफाई करने के लिए देशभक्ति के रूप में पकिस्तान और मुसलमानों का विरोध करते थे ,,जो की एक बहुत ही संवेदन शील विषय है और एक आम आदमी जिसे राजनीती की समझ नहीं है वो इस झांसे में आसानी से आ जाता है।विरासत के रूप में भी उन्होंने अपने 3 बच्चो को समाज में येही जहर घोलने की शिक्षा देकर ही छोड़ा है,

देशभक्ति का मतलब असल में देश की जनता की भक्ति , उनका सामान और उनके संघर्ष में हिस्सेदारी होता है,,,ना की एक वर्ग विशेष के लोगो की भावनाओं को भड़का कर अपनी राजनितिक रोटी सेकना,,,,,,,,,अगर येही देशसेवा है तो फिर मुलायम सिंह , मायावती और बाबूसिंह कुशवाहा भी देशभक्त है,,,,

अंत में बस येही कहूँगा की उनकी बेबाकी और कला प्रतिभा अतुलनीय थी ,,,,लेकिन यदि आप उसे देशभक्ति, समाजसेवा या वर्ग संघर्ष के योद्धा के रूप में देखते है,,,तो Please Count me Out

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

देशभक्ति का फैशन

भारत एक फैशनेबल मुल्क है,,,
जह कई तरह के फैशन आते जाते रहते है..आजकल फैशन है देशभक्ति का और समाज को बदलने का. जाहिर है जब फैशन है तो इसको मार्केटिंग करने वाले रोल मॉडल भी जरूर होंगे.
तो ये रोल मॉडल है एक चोकलेटी हीरो आमिर खान, एक NGO भिखमंगा अरविन्द केजरीवाल, एक NGO दलाल किरण बेदी . एक अनशन एक्सपर्ट अन्ना हजारे , एक संत के रूप में द्धोंगी रामदेव, और एक काल्पनिक प्रेमगीत और हवाई दुनिया के प्रेमगीत गाने वाला भांड कुमार विश्वास.
आज आमिर खान के बारे में बात करते है ,बाकियों की पोल कभी बाद में खोलेंगे,.

तो पहला ड्रामेबाज है आमिर खान - जिसने ३ करोड़ रूपये पर एपिसोड लेकर एक जबरदस्त मनोरंजक सीरियल बनाया और लोगो को रुला कर खूब मनोरंजन किया और समस्याओं का निहायत ही अवैज्ञानिक समाधान देकर कुछ NGO के लिए लोगो से पैसा इकठ्ठा किया. नीता अम्बानी भाभी का एक दयालु रूप पेश करके भारत के नम्बर एक खून चूसने वाले पूंजीपति रिलायंस की कंपनी का एक हमदर्दी भरा इमेज बनाया.सहानुभूति बटोरने के लिए प्रोग्राम के अंत में एक दर्द भरा गाना बजाते थे जो गाता था राम संपत, ज्ञात रहे की ये वोही संगीत्कार / गायक है जिसने आमिर की फिल्म डेल्ही बेली में "भाग भाग डी के बोस , बोसडीके ,बोसडीके ,बोसडीके " जैसा कालजयी गीत बना कर भारत के युवा वर्ग को एक नयी क्रांतिकारी दिशा दी।

दहेज़ , कन्या भ्रूण हत्या , जाप पात छुआ छूत , और इसमें दिखाई हर सामाजिक समस्या का समाधान इस आदमी ने लगभग व्यक्तिगत समस्या बता कर हर इंसान को मंथन करने और सुधरने के सलाह दे डाली जैसे की आध्यात्मिक लोग कहते है "पहले खुद जागो ,,,तभी समाज जागेगा "..
पूरे 13 एपिसोड में कही भी पूंजीवादी शोषण कारी सिस्टम का जिक्र तक नहीं हुआ,,,,भारत में आर्थिक धार्मिक और जातिगत असमानता की वजह से उत्पन्न अंतरविरोधो का जिस तरह पूंजीपति लोग फायदा उठाते है उस विषय को छुआ तक नहीं गय.
फिलहाल जो प्रोग्रम रिलायंस जैसी कंपनी के सहयोग से बना हो उससे उम्मीद भी क्या की जा सकती है। लेकिन आमिर खान जो की इस प्रोग्राम के लिए 2 साल के सर्वे और अपनी मेहनत के गुणगान करता फिर रहा था. उसकी साड़ी पोल पट्टी खुल गयी ,आज देखिये वो कही भी सीन में नहीं है, क्योंकि उसका उद्देश्य सिर्फ अपनी तथाकथित समाज सेवा की भावनाओं को बहलाना और पैसा कमाना था, बिना मानव् समाज और इसके वैज्ञानिक दर्शन को समझे बिना ऐसे इंसान से ऐसे ही प्रोग्राम की उम्मीद की जा सकती है. पहले ये इंसान ऐसे प्रोग्राम बना कर आपके घर परिवार में एक महा पुरुष की इमेज बना लेता है फिर इस्सी इमेज को भुनाता है और आपको अपनी फिल्मे दिखाने के लिए सिनेमा हाल तक खीच के लाता है,,फिर डेल्ही बेली जैसी फिल्म बना कर युवाओं की कुंठाओं को बाहर निकाल कर पैसा कमाता है,
ये मुनाफे पे आधारित व्यवस्था के ऐसे भक्त है जो सत्यमेव जयते में घडी घडी टसुए बहा कर पैसा कमाते है. फिर बेसिर पैर की फिल्मे बना कर उसके द्वारा फैलाए जाने वाले गंदे कल्चर को जस्टिफाई करते फिरते है .,,,आमिर खान कहता है की गालिया समाज में दी जाती है . फिर इन्हें 18 साल से ऊपर वालो को दिखाने में क्या हर्ज है.
फिल्म के एक द्रश्य में जब एक हीरो एक वेश्यागमन करता है ,,,और वो उससे पैसे मांगती है तो वो उसकी छाती दबा कर उसका हिसाब बराबर करने की बात कहता है , येही वो कामुक कुंठाए है जो आज का युवा वर्ग अपने दिमाग में लिए सड़क पर हर आने जाने वाली लड़की को लगभग "खा" जाने वाली नजरो से देखता है . और ऐसी फिल्मे इसमें आग में घी का काम करती है,,,इसी गंदे कल्चर की वजह से गुवाहाटी जैसी घटनाए , गैंग रेप जैसी घटनाएं होती है और फिर ये लोग टीवी प्रोग्राम बना कर उससे भी पैसा कमा ले जाते है,,,,

समाज में सारी असमानताए और गन्दगी सिर्फ और सिर्फ पूंजीवादी शोषण कारी सिस्टम से कही न कही जुडी हुई है,क्योंकि हर चीज से सिर्फ पैसा कमाया जाता है ,,चाहे वो सत्यमेव जयते जैसा प्रोग्राम हो या डेल्ही बेली जैसी फिल्म।।।
और अंत में एक महान इंसान की कही हुई बात से ये पोस्ट ख़तम करता हूँ।।
"तथाकथित स्वास्थ्य मनोरंजन ,,,,सिर्फ यथास्तिथि को बनाए रखने में किया गया एक प्रचार मात्र होता है "

भगवान् या "डर " - ओह माय गॉड ..??

"They are not God Loving People...they are God Fearing People"

फिल्म के इस  संवाद से मैं बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुआ,,,मुझे याद है वो कालेज के दिन जब मैं सव्यसांची मुखर्जी की एक किताब "मेरी दुनिया की कहानी" पढ़ा करता था...जिसमे मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद बड़े ही अछे ढंग से समझाया गया था।।।।
भगवान् की सत्ता पर से मेरा विश्वास तो पहले ही उठ चूका था,,,,लेकिन मन में कुछ भाववादी विचार अभी भी जीवित थे,,,जो ऐतिहासिक भौतिकवाद के अध्यन से दूर हो गए और मैं एक पक्का वज्ञानिक विचारवादी नास्तिक बन गया,,,

उसी समय मेरे कुछ दोस्त हुआ करते थे ,,,,जिन्हें मैंने वो किताब दी और अति उत्साह के चलते उनसे कहा की इसे पढने के बाद आप लोग भगवान् को मानना छोड़ दोगे .....उनमे से मैं सिर्फ एक दोस्त को ही वैज्ञानिक समझ से परिचित करा पाया,,,जिसमे मेरे कम और उसके खुद के विवेक का ज्यादा योगदान था,,,,,,लेकिन उसमे से एक दोस्त  ऐसा भी था जिस्ने वो किताब पढने से इनकार कर दिया ,,और कहा,,,यार मैं तुम्हारी हर बात मानूंगा ,,,लेकिन मैं भगवान् को मानना नहीं छोडूंगा,,,,,,,,क्योंकि उसके सारे सवालों के जवाब उसे मिल चुके थे,,,और तब उसके पास भगवान् से दर के आलावा कोई और वजह नहीं बची थी।।।

आज भी ऐसा ही होता है,,,,आप भगवान् के बारे में कुछ गलत बोलो,,,,और आपका  अगले मोड़ पर एक्सीडेंट हो जाए तो आप इसे भगवान् का दंड समझते हो,,,,,,,आपको लगता है की मेरे परिवार को कोई नुक्सान ना हो जाए,,,मेरी नौकरी या धंधे में कोई कोई बाधा ना आ जाए,,,मेरे बनते काम न बिगड़ जाए,,,और येही डर  आपको भगवान् के पास लेकर जाता है,,,,
मेरी इस बात को शायद कई लोग नहीं मानेंगे और भगवान् के आध्य्तामिक स्वरुप का वर्णन करना चाहेंगे,,,लेकिन दोस्तों चाहे इंसान कितने भी बहाने बना ले,,,,लेकिन भगवान् को मानने का मुख्या कारण येही होता है,,,,,,शायद आपका भगवान् के मानने का कारण उसके प्रति प्रेम हो,,,,,,,,,,,,,लेकिन मैं यहाँ बहुसंख्यक भारतीय अवाम  की बात कर रहा हूँ।जिसका भगवान् का मानने का कारण "डर " है ..

और इस डर की जड़े बहुत गहरी है,,,,,,,आदिम आदिमानव काल से ही ये इंसान के साथ है,,,,,,,जब इंसान को भयंकर प्रकर्तिक आपदाओं के बारे में कोई ज्ञान नहीं था,,,तो उसने एक ईश्वरीय शक्ति की कल्पना करके उन्हें पूजना शुरू कर दिया,,,,,,उसने इंद्र को बारिश का देवता बना दिया,,,और उससे बाढ़ आपदा को हटाने के लिए प्रार्थना शुरू कर दी,,,,,इस्सी तरफ संस्कृति के विकास के साथ साथ और देवी देवताओं की कल्पना हुई,,,जिसमे उनकी पूजा से मिलने वाले फायदे और उनके नाराज होने पर विपत्तियों का आने का डर मुख्य कारण था।
तो सच्चाई ये है की इंसान ने भगवान् को बनाया है,,,भगवान् ने नहीं,,,,,इसे कोई नकार नहीं सकता ,,सिर्फ उनके आलावा जो भगवान् नाम की काल्पनिक शक्ति से डरते है
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