"They are not God Loving People...they are God Fearing People"
फिल्म के इस संवाद से मैं बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुआ,,,मुझे याद है वो कालेज के दिन जब मैं सव्यसांची मुखर्जी की एक किताब "मेरी दुनिया की कहानी" पढ़ा करता था...जिसमे मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद बड़े ही अछे ढंग से समझाया गया था।।।।
भगवान् की सत्ता पर से मेरा विश्वास तो पहले ही उठ चूका था,,,,लेकिन मन में कुछ भाववादी विचार अभी भी जीवित थे,,,जो ऐतिहासिक भौतिकवाद के अध्यन से दूर हो गए और मैं एक पक्का वज्ञानिक विचारवादी नास्तिक बन गया,,,
उसी समय मेरे कुछ दोस्त हुआ करते थे ,,,,जिन्हें मैंने वो किताब दी और अति उत्साह के चलते उनसे कहा की इसे पढने के बाद आप लोग भगवान् को मानना छोड़ दोगे .....उनमे से मैं सिर्फ एक दोस्त को ही वैज्ञानिक समझ से परिचित करा पाया,,,जिसमे मेरे कम और उसके खुद के विवेक का ज्यादा योगदान था,,,,,,लेकिन उसमे से एक दोस्त ऐसा भी था जिस्ने वो किताब पढने से इनकार कर दिया ,,और कहा,,,यार मैं तुम्हारी हर बात मानूंगा ,,,लेकिन मैं भगवान् को मानना नहीं छोडूंगा,,,,,,,,क्योंकि उसके सारे सवालों के जवाब उसे मिल चुके थे,,,और तब उसके पास भगवान् से दर के आलावा कोई और वजह नहीं बची थी।।।
आज भी ऐसा ही होता है,,,,आप भगवान् के बारे में कुछ गलत बोलो,,,,और आपका अगले मोड़ पर एक्सीडेंट हो जाए तो आप इसे भगवान् का दंड समझते हो,,,,,,,आपको लगता है की मेरे परिवार को कोई नुक्सान ना हो जाए,,,मेरी नौकरी या धंधे में कोई कोई बाधा ना आ जाए,,,मेरे बनते काम न बिगड़ जाए,,,और येही डर आपको भगवान् के पास लेकर जाता है,,,,
मेरी इस बात को शायद कई लोग नहीं मानेंगे और भगवान् के आध्य्तामिक स्वरुप का वर्णन करना चाहेंगे,,,लेकिन दोस्तों चाहे इंसान कितने भी बहाने बना ले,,,,लेकिन भगवान् को मानने का मुख्या कारण येही होता है,,,,,,शायद आपका भगवान् के मानने का कारण उसके प्रति प्रेम हो,,,,,,,,,,,,,लेकिन मैं यहाँ बहुसंख्यक भारतीय अवाम की बात कर रहा हूँ।जिसका भगवान् का मानने का कारण "डर " है ..
फिल्म के इस संवाद से मैं बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुआ,,,मुझे याद है वो कालेज के दिन जब मैं सव्यसांची मुखर्जी की एक किताब "मेरी दुनिया की कहानी" पढ़ा करता था...जिसमे मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद बड़े ही अछे ढंग से समझाया गया था।।।।
भगवान् की सत्ता पर से मेरा विश्वास तो पहले ही उठ चूका था,,,,लेकिन मन में कुछ भाववादी विचार अभी भी जीवित थे,,,जो ऐतिहासिक भौतिकवाद के अध्यन से दूर हो गए और मैं एक पक्का वज्ञानिक विचारवादी नास्तिक बन गया,,,
उसी समय मेरे कुछ दोस्त हुआ करते थे ,,,,जिन्हें मैंने वो किताब दी और अति उत्साह के चलते उनसे कहा की इसे पढने के बाद आप लोग भगवान् को मानना छोड़ दोगे .....उनमे से मैं सिर्फ एक दोस्त को ही वैज्ञानिक समझ से परिचित करा पाया,,,जिसमे मेरे कम और उसके खुद के विवेक का ज्यादा योगदान था,,,,,,लेकिन उसमे से एक दोस्त ऐसा भी था जिस्ने वो किताब पढने से इनकार कर दिया ,,और कहा,,,यार मैं तुम्हारी हर बात मानूंगा ,,,लेकिन मैं भगवान् को मानना नहीं छोडूंगा,,,,,,,,क्योंकि उसके सारे सवालों के जवाब उसे मिल चुके थे,,,और तब उसके पास भगवान् से दर के आलावा कोई और वजह नहीं बची थी।।।
आज भी ऐसा ही होता है,,,,आप भगवान् के बारे में कुछ गलत बोलो,,,,और आपका अगले मोड़ पर एक्सीडेंट हो जाए तो आप इसे भगवान् का दंड समझते हो,,,,,,,आपको लगता है की मेरे परिवार को कोई नुक्सान ना हो जाए,,,मेरी नौकरी या धंधे में कोई कोई बाधा ना आ जाए,,,मेरे बनते काम न बिगड़ जाए,,,और येही डर आपको भगवान् के पास लेकर जाता है,,,,
मेरी इस बात को शायद कई लोग नहीं मानेंगे और भगवान् के आध्य्तामिक स्वरुप का वर्णन करना चाहेंगे,,,लेकिन दोस्तों चाहे इंसान कितने भी बहाने बना ले,,,,लेकिन भगवान् को मानने का मुख्या कारण येही होता है,,,,,,शायद आपका भगवान् के मानने का कारण उसके प्रति प्रेम हो,,,,,,,,,,,,,लेकिन मैं यहाँ बहुसंख्यक भारतीय अवाम की बात कर रहा हूँ।जिसका भगवान् का मानने का कारण "डर " है ..
और
इस डर की जड़े बहुत गहरी है,,,,,,,आदिम आदिमानव काल से ही ये इंसान के साथ
है,,,,,,,जब इंसान को भयंकर प्रकर्तिक आपदाओं के बारे में कोई ज्ञान नहीं
था,,,तो उसने एक ईश्वरीय शक्ति की कल्पना करके उन्हें पूजना शुरू कर
दिया,,,,,,उसने इंद्र को बारिश का देवता बना दिया,,,और उससे बाढ़ आपदा को
हटाने के लिए प्रार्थना शुरू कर दी,,,,,इस्सी तरफ संस्कृति के विकास के साथ
साथ और देवी देवताओं की कल्पना हुई,,,जिसमे उनकी पूजा से मिलने वाले फायदे
और उनके नाराज होने पर विपत्तियों का आने का डर मुख्य कारण था।
तो सच्चाई ये है की इंसान ने भगवान् को बनाया है,,,भगवान् ने नहीं,,,,,इसे कोई नकार नहीं सकता ,,सिर्फ उनके आलावा जो भगवान् नाम की काल्पनिक शक्ति से डरते है
"तो सच्चाई ये है की इंसान ने भगवान् को बनाया है,,,भगवान् ने नहीं,,,,,इसे कोई नकार नहीं सकता ,,सिर्फ उनके आलावा जो भगवान् नाम की काल्पनिक शक्ति से डरते है
विश्वनाथ जी
जवाब देंहटाएंजनसत्ता के संपादकीय पेज पर छपने वाले साभार स्तंभ समांतर में आपके इस पोस्ट को थोड़ा संपादित करके छापा जा सकता है क्या?
इसमें लेख के साथ लेखक का नाम और उनके ब्लॉग का पता भी प्रकाशित होता है।
अगर आपत्ति न हो तो जितनी जल्दी हो, मेरे इ-मेल पर एक सूचना जरूर भेज दें। मेरा इ-मेल है- arvindshesh@gmail.com
शुक्रिया
अरविंद शेष
जनसत्ता
प्रिय अरविन्द जी ये मेरी खुशनसीबी होगी की आप आप इसे और ज्यादा लोगो तक पहुचाये।।।
जवाब देंहटाएंते लेख मैंने ही लिखा है .
मेरा नाम - विश्वनाथ डोभाल
अगर आप इसे वह पर पोस्ट करे तो क्रप्या एक लिंक मुझे भी मिल कर दीजियेगा,
धन्यवाद
मेरी दुनिया की कहानी " यह पुस्तक कहाँ से प्राप्त होगी ?
जवाब देंहटाएंआपकी टिपण्णी के लिए धन्यवाद शरद जी,
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग बहुत अच्छे लगे,
उस किताब के लिए शायद दरियागंज के कुछ एक किताबो के शो रूम में आपको मेहनत करनी पड़ेगी,
अन्यथा आप मुझे अपना पता मेल कर दे, संभव हुआ तो मैं अपने किसी मित्र से लेकर आपको एक फोटो कॉपी बनवा कर भेज सकता हूँ।
परन्तु यह एक बहुत ही बेसिक किताब है मार्क्सवाद के बारे में,,,जैसे की राहुल संस्क्रत्यानन जी की "भागो नहीं दुनिया को बदलो".
आभार