मंगलवार, 22 नवंबर 2022

नेहरू (एक आलोचनात्मक लेख ) ------------- एक बार युवा चंद्रशेखर आज़ाद को किसी तरह नेहरू जी से मिलने का मौक़ा मिला। चंद्रशेकर आज़ाद उस समय नेहरू से समाजवादी रूस ( लेनिन नीत अक्टूबर क्रान्ति ) की नीतियों के तहत उसने भारत में सम्पूर्ण क्रान्ति का ज़िक्र कर बैठे। स्वाभाविक है क्रान्ति का स्वरुप जो उन्होंने नेहरू के सामने रखा वो पूरी तरह ब्रिटिश सरकार के तख्ता पलट और सत्ता पर बलपूर्वक कब्ज़े के बाद शोषणरहित समाज की स्थापना का था।
जिस आदमी के साथ आज़ाद नेहरू से मिलने आये थे , उस आदमी से नेहरू ने कहा - की इस लड़के को समझाओ , ये कैसी अतिउत्साहवादी बातें कर रहा है ? शायद ये ब्रिटेन के साम्रज्य्वादी फैलाव और उसकी मशीनी सभ्यता की ताकत को नहीं जानता ? ---------------- साम्रज्य्वाद के फैलाव और मशीनी सभ्यता को सबसे पहले अपना चुके ब्रिटेन द्वारा तीसरी दुनिया में उपनिवेश बनाने के घटनाक्रम को जो भी इंसान वैज्ञानिक तरीके से समझता है ,,,वो कभी भी नेहरू या गांधी की वैचारिकी के आलोचनात्मक पहलू से अलग नहीं हो सकता। गांधी नेहरू की पूरी विचारधारा साम्राज्यवादी ताकतों के सामने आत्मसमर्पण और शांतिपूर्ण सहयोग की रही थी। और इसके उनका पूरा जोर इस बात पर रहा की स्वतंत्रता के संघर्ष को वैज्ञानिक राह ना मिल पाए और भारत का क्रांतिकारी संघर्ष चीन में चलाये जा रहे जनयुद्ध और रशियन अक्टूबर क्रान्ति की शिक्षाओं से अनभिज्ञ ही रहे (वो दौर 1910 से लेकर 1950 तक जब पूरी दुनिया में नवजनवादी व् समाजवादी क्रांतियों के लिए संघर्ष/जनयुद्ध चल रहे थे ) . ज़ाहिर है की शताब्दी के पहले हाफ में ब्रिटेन और बाद में अमेरिका सबसे बड़ी औपनिवेशिक ताकत थे , जिनके हाथ में दुनिया का अधिकतर कच्चा माल था ( उपनिवेशिक देशों के रूप में ) और लेकिन दोनों विश्वयुद्धों के तहत दुनिया एक एक बहुत बड़ा मार्केट रशिया और उसके संघीय देशो के रूप में अलग हो चुका था। और उसके बाद चीन भी समाजवादी क्रान्ति के तहत चीन भी इनके हाथ से जा चुका था। इसलिए ब्रिटेन की सबसे बड़ी कोशिश ये थी की भारत में किसी भी हालत में चीन जैसी नवजनवादी क्रान्ति ना होने पाए। अंततः हुआ ये की चालीस के दशक के बाद से डोमिनियन स्टेटस , वेलफेयर स्टेटस और तथाकथित रूप से समाजवादी मॉडल की सरकार बनाने की ड्रामेबाजी शुरू हुई। ताकि रूस , चीन और पूर्वी यूरोप जैसे समाजवादी मॉडल्स को पनपने से रोका जा सके। इसलिए भारत के स्वतंत्रता संघर्ष की दिशा असल में क्या होनी चाहिए थी ये सवाल अब भी चिंतन योग्य है, और ये भी की नेहरू गांधी पटेल साहेब की साम्रज्य्वादियो के साथ परस्पर सहयोग से इसको किस दिशा में मोड़ दिया गया। अगर मैं ये कहूँ की नेहरू ने साम्रज्य्वादी ब्रिटेन के डोमिनियन स्टेट को स्वीकार कर गलत किया तो तुरंत ये सवाल भी उठता है की अगर ऐसा नहीं होता तो फिर भारत में कौन सी ऐसी पार्टी थी जो की एक लम्बे जनयुद्ध या जनसंघर्ष चलाकर एक सम्पूर्ण क्रान्ति के लिए तैयार थी या संघर्षरत थी ? यदि आपका जवाब सुभाष चंद्रा बोस की लाइन है तो शायद ये भी सवाल उठेगा की नेताजी की पूरी शक्ति जर्मन और जापान के तकनिकी सहयोग पर आधारित थी , और जो की खुद भी दूसरे साम्रज्य्वादी खेमें से लड़ रहे थे। अब चूँकि नेताजी की भविष्य के लिए प्लानिंग थी ? ये जवाब मिलने से पहले ही वो दुर्घटना में कालग्रस्त हो गए थे , इसलिए ये बहस भी समाप्त हो जाती है। तो उस समय के हिसाब से अगर डोमिनियन स्टेटस की थियोरी को सही माना जाए तो हम उस निर्णय के प्रगतिशील परिणाम के तौर पर इतना मान ही सकतें हैं की पूंजीवादी उत्पादन के शुरआत के लिए भारत के राजो रजवाड़ो वाले सामंती ढाँचे के खात्मे की शुरुआत करके आधा अधूरा ही सही लेकिन भारत को एक जनतांत्रिक देह देने में नेहरू पटेल अच्छा खासा योगदान रहा। इसके साथ साथ शीतयुद्ध के दौरान और निकिता ख्रुश्चेव की शांतिपूर्ण संक्रमण के तहत नेहरू की सोवियत संघ के साथ नजदीकियां और सोवियत ढांचे की नक़ल के तहत पंचायती राज और सहकारी व् पब्लिक सेक्टर की संस्थाओ को बढ़ाने की कोशिश का भी भारत ठीक ठाक योगदान रहा , लेकिन ये ढांचा खुद रूस की संशोधनवादी पार्टी ( पोस्ट स्टालिन इरा ) के कार्यक्रम पर आधारित था इसलिए नेहरू के बाद की कोन्ग्रेस्स के समय इसका जो हश्र हुआ वो स्वाभाविक ही था। नेहरू की तारीफ की जानी जितनी जरुरी है , उतना ही जरुरी ये भी है की हम उनकी नीतियों के आलोचनात्मक पहलू को भी सामने रखें। इसलिए यदि आप संघी व्हाट्सअप्पस की मनोहर छाप कहानियों से इतर नेहरू का एक सही आलोचनात्मक पहलु देखना चाहतें हैं - अगर आपको नेहरू और गांधी की शिष्टपूर्ण तकनिकी तौर पर आलोचना सुननी हो तो आप किसी वामपंथी से मिलिए। क्योंकि इन फासिस्टों से मुक्ति के बाद भी अगर आप नेहरू साब की मध्यमार्ग या लिबरल वेलफेयर राजनीती के पक्षधर हैं तो ये ध्यान में रखना होगा की मध्यमार्गी राजनीती के पूरे काल में फासिस्ट एक चेन से बंधे कुत्तों के सामान होतें हैं। जिनकी चेन खुलने की संभावना हमेशा बानी रहती है। इसलिए नेहरू के गुणगान जरूर कीजिये , लेकिन निंदक नियरे जरूर रखिये। थैंक्स