बुधवार, 9 अप्रैल 2014

रहनुमा

 ज्यादा इतराओ मत , ज्यादा खुश मत होओ।
ये जो छदम विकास कि गपोड़ कथाओ पर तुम इठला रहे हो
इनकी असलियत तुम भी जानते हो। .

तुम्हारी इस शालीनता के पीछे छिपे
जो नफरत के समंदर  उछल रहे है
वो साफ़ साफ़ दिखते है

एक मज़हबी नफ़रत का ज़हर जो तुम्हारे दिमाग में है
उसको पनाह देने वाला रहनुमा आज उफान पर है
तुम उसके दम पर ही कूदते हो ना ?

लेकिन तुम भूल रहे हो। .
वो रहनुमा नहीं सिर्फ एक पालतू कुत्ता है। 
और उसके मालिको को सिर्फ मुनाफ़ा दिखता है।

उस मुनाफे में जब कमी आएगी तो वो पहला धक्का तुम्हारे रहनुमा को मारेंगे
और फिर तुम्हारी रगो में बहते लहू को निचोड़ कर अपना मुनाफा खींच लेंगे
बिना ये जाने के तुम हिन्दुआन हो या मुल्ले!

उस दिन तुम्हारा रहनुमा अपनी बेरोजगारी पर आंसू बहा रहा होगा।

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