मंगलवार से शुरू राहत व बचाव कार्य के बाद अब तक 10 हजार लोग ही निकाले गए हैं। बाकी के बीस हजार कहां गए, इसका जवाब सरकार, शासन और प्रशासन के पास नहीं है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, गौरीकुंड से केदारनाथ धाम के 14 किमी के पैदल ट्रैक पर 4700 खच्चर चलते हैं। आपदा वाले दिन यह सभी बुक थे।
एक यात्री और एक खच्चर वाले को जोड़ दिया जाए तो इनकी संख्या 9400 पर पहुंच जाती है। इसी तरह पैदल ट्रैक पर 700 डंडी चलती है। एक डंडी को ले जाने के लिए चार लोग लगते हैं।
पीक सीजन में सभी डंडी चल रही थीं। यानी डंडी ले जाने वाले 2800 लोग हुए और उनमें बैठे 700 लोगों को मिलाकर कुल 3500 लोग हो जाते हैं। इसी तरह 500 कंडी संचालित होती है।
एक कंडी के साथ दो लोग होते हैं और एक यात्री बैठा होता है। इस तरह 1500 लोग यह भी हो जाते हैं। केदारनाथ से लेकर गौरीकुंड तक में 250 होटल हैं। एक होटल में कम से कम चार कर्मचारी होते हैं। इस तरह 1000 तो होटल के कर्मचारी हो जाते हैं।
केदारनाथ में मौजूद होटलों में 6000 यात्रियों के रुकने की व्यवस्था है। इसी तरह गौरीकुंड में स्थित होटलों में 8000 यात्री ठहर सकते हैं। पीक सीजन होने के कारण सभी होटल फुल थे।
इसका मतलब यह हुआ कि दो जगहों पर 14,000 यात्री ठहरे हुए थे। इस रूट पर 700 सरकारी कर्मचारी भी हमेशा तैनात रहते हैं। स्थानीय व्यापारियों की संख्या भी 500 से अधिक रहती है।
सुलभ इंटरनेशनल के 120 कर्मचारी और 100 पुरोहित भी मौजूद थे। सभी को मिलाकर 30120 लोग तबाही वाली रात यहां थे। 10 हजार बचाए गए तो 20 हजार कहां गए-इसका जवाब कोई नहीं दे रहा है।
बहरहाल, 24,800 लोग अभी भी फंसे हुए हैं। बृहस्पतिवार को टिहरी से गुप्तकाशी तक केदारनाथ मोटर मार्ग यातायात के लिए खुल गया तो इस रास्ते से हजारों यात्री ऋषिकेश पहुंचाए गए। (< from Aaj Tak news)
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लोग आजकल उत्तराखंड की कांग्रेस की सरकार को गाली दे रहे है , कुछ समय बाद अगर बीजेपी शाशित राज्य में हादसा होगा तो बीजेपी को दोष दिया जाएगा .समस्या ये नहीं है की उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार ढीली है जिस वजह से लोग अभी तक राहत मिलने से महरूम है .
समस्या ये है की इस मुल्क की पूरी व्यवस्था ही भरष्ट है .....चाहे उत्तराखंड का ये हादसा हो या बिहार की छठ पूजा , चाहे अमरनाथ की यात्रा हो या किसी गाँव की स्कूल की बिल्डिंग गिरने जैसी दुर्घटना ,,,इस मुल्क में सब कुछ हवा में चल रहा है , इंसान की जान का उसकी सुविधाओं का किसी सरकार को कोई कंसर्न नहीं है . वो अपने सत्ता के गणित भिडाने में लगी रहती है और ऐसे हादसात में भी पैसा बनती है . ये सारा बर्बादी का कारोबार तब तक चलता रहेगा जब तक की इस पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ कर नहीं फेंका जाएगा .
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, गौरीकुंड से केदारनाथ धाम के 14 किमी के पैदल ट्रैक पर 4700 खच्चर चलते हैं। आपदा वाले दिन यह सभी बुक थे।
एक यात्री और एक खच्चर वाले को जोड़ दिया जाए तो इनकी संख्या 9400 पर पहुंच जाती है। इसी तरह पैदल ट्रैक पर 700 डंडी चलती है। एक डंडी को ले जाने के लिए चार लोग लगते हैं।
पीक सीजन में सभी डंडी चल रही थीं। यानी डंडी ले जाने वाले 2800 लोग हुए और उनमें बैठे 700 लोगों को मिलाकर कुल 3500 लोग हो जाते हैं। इसी तरह 500 कंडी संचालित होती है।
एक कंडी के साथ दो लोग होते हैं और एक यात्री बैठा होता है। इस तरह 1500 लोग यह भी हो जाते हैं। केदारनाथ से लेकर गौरीकुंड तक में 250 होटल हैं। एक होटल में कम से कम चार कर्मचारी होते हैं। इस तरह 1000 तो होटल के कर्मचारी हो जाते हैं।
केदारनाथ में मौजूद होटलों में 6000 यात्रियों के रुकने की व्यवस्था है। इसी तरह गौरीकुंड में स्थित होटलों में 8000 यात्री ठहर सकते हैं। पीक सीजन होने के कारण सभी होटल फुल थे।
इसका मतलब यह हुआ कि दो जगहों पर 14,000 यात्री ठहरे हुए थे। इस रूट पर 700 सरकारी कर्मचारी भी हमेशा तैनात रहते हैं। स्थानीय व्यापारियों की संख्या भी 500 से अधिक रहती है।
सुलभ इंटरनेशनल के 120 कर्मचारी और 100 पुरोहित भी मौजूद थे। सभी को मिलाकर 30120 लोग तबाही वाली रात यहां थे। 10 हजार बचाए गए तो 20 हजार कहां गए-इसका जवाब कोई नहीं दे रहा है।
बहरहाल, 24,800 लोग अभी भी फंसे हुए हैं। बृहस्पतिवार को टिहरी से गुप्तकाशी तक केदारनाथ मोटर मार्ग यातायात के लिए खुल गया तो इस रास्ते से हजारों यात्री ऋषिकेश पहुंचाए गए। (< from Aaj Tak news)
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लोग आजकल उत्तराखंड की कांग्रेस की सरकार को गाली दे रहे है , कुछ समय बाद अगर बीजेपी शाशित राज्य में हादसा होगा तो बीजेपी को दोष दिया जाएगा .समस्या ये नहीं है की उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार ढीली है जिस वजह से लोग अभी तक राहत मिलने से महरूम है .
समस्या ये है की इस मुल्क की पूरी व्यवस्था ही भरष्ट है .....चाहे उत्तराखंड का ये हादसा हो या बिहार की छठ पूजा , चाहे अमरनाथ की यात्रा हो या किसी गाँव की स्कूल की बिल्डिंग गिरने जैसी दुर्घटना ,,,इस मुल्क में सब कुछ हवा में चल रहा है , इंसान की जान का उसकी सुविधाओं का किसी सरकार को कोई कंसर्न नहीं है . वो अपने सत्ता के गणित भिडाने में लगी रहती है और ऐसे हादसात में भी पैसा बनती है . ये सारा बर्बादी का कारोबार तब तक चलता रहेगा जब तक की इस पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ कर नहीं फेंका जाएगा .
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