सोमवार, 22 जुलाई 2013

एक कविता .......... गाज़ा के बच्चो के नाम ...

 हम जमे रहेंगे क़यामत तक इस धरती पर ..
देवदारु के वृक्ष की तरह
चीड़ की नुकीली फिसलन भरी पत्तियों की तरह हमारे बच्चे लेट जायेंगे अपनी भूमि पर .
और नहीं टिकने देंगे तुम्हारे लुटेरे  साम्रज्यवादी इरादों का पानी ....
दुनिया का हर कोना हम तुम्हारे लिए असुरक्षित बना देंगे ...
और दुनिया देखेगी की किस तरह तुमने हमारी नस्लों को जानवर बना दिया ..
मात्रभूमि ही हमारे लिए सब कुछ है ,,,घर ही सबकुछ है ..
पुरखे लड़े .,, हम लड़े ,,और मुस्तकबिल में लड़ेंगे हमारे बच्चे ..
जंजीरों की आखिरी कड़ी तोड़ने तक .....


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