{शुद्धिकरण }
बाजार से वापस लौटते हुए घर में मेरे ताऊ जी धडधडाते हुए गुस्से में आये ...और जोर जोर से चिल्लाने लगे ..
" सत्यानाश हो जाए उस नाश पिटे का....बेशरम कही के ,ना जाने कब सुधरेंगे,,,,
मैं बोला "अरे ताऊ जी क्या हो गया,,किसी ने कुछ बोला हो तो बताओ,,अभी मैं जाता हूँ ...."
अरे कुछ नहीं बेटा .... पीछे अग्रवाल साहब वाली गली में से आ रहा था, ,,,तभी एक गंदा सा कूड़ा बीनने वाला बच्चा गली में घुस कर लगा गन्दगी से खेलने,,,और अन्धो की तरह मुझसे टकरा गया .
नामुराद जब देख रहा है की छोटी सी गली है तो रुक नहीं सकता था,,,की मैं निकल जाऊ तब घुसे , सब गंदा कर दिया साले ने ..
जा बेटा ज़रा पूजा की अलमारी से गंगाजल निकाल के ले आ ..
"ताऊ जी ...गंगा जल तो ख़तम हो गया ..."
अरे तो ऊपर वाले खाने में गौमूत्र रखा है . उसे ले आ .
वापस आकर देखा तो ताऊ जी नहा कर वापस आ गए थे ....उन्होंने मुझे कुछ बूँद गौमूत्र लेकर पीया ,,और बोले
""ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोsपि वा ।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।"""
मैं खडा खडा सोच रहा था अपने महान धरम के बारे में , जो इंसानों को इंसानों के छूने मात्र से अपवित्र करता है ,,और जानवरों के मूत्र से शुद्धिकरण कर देता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें