तमाम शोशल साइट्स पर पिछले 10 दिनों में डी.एस.पी जिया उल हक़ की शहादत के बाद जो बेशर्मी का खेल खेला गया वो ये बताने के लिए काफी था की इस मुल्क के हालत कभी नहीं सुधरने वाले और हम लोग यकीनन जिन हालातो में जी रहे है उन्ही हालातो में जीते रहेंगे। जैसा की पहले मैंने लिखा था की भारतीय अवाम अपने सामंती बन्धनों में इतनी बुरी तरह जकड़ी हुई है की वो समाज में घटने वाली हर घटना को पहले जाती धरम के नजरिये से देखती है , और हर मसले में गैर जरुरतन हिन्दू मुस्लिम दलित सवर्ण दलगत राजनीती के मुद्दे डाल कर आपस में नूरा कुश्ती शुरू कर देती है . चूँकि ऐसे लोगो में खुद मानवीय संवेदनाये नहीं है इसलिए वो जिया उल हक़ की बेवा परवीन आज़ाद की भावनाओं को समझने में नाकाम रहे, बल्कि उन भावनाओं का अपनी कुत्सित मानसिकता से मनगढ़ंत अर्थ निकाल कर एक बेवा के बारे में ऐसी घ्रणित बाते शुरू कर दी जिसे पढ़ कर शायद फ़रिश्ते भी शर्मशार हो जाए।
ये बात सही है की परवीन आज़ाद ये चाहती हैं की उन्हें डी.एस.पी की ही पोस्ट मिले . लेकिन लोगो ने इन बातो का अर्थ कुछ ऐसा निकला की जैसे ये कोई बड़ी ही सरकारी मलाईदार पोस्ट है जिसे पाकर परवीन आज़ाद मालामाल हो जायेंगी। तकनिकी रूप से शायद ये संभव नहीं की उन्हें ये पोस्ट मिल पाए , क्योंकि PPS (Provincial police service) की परीक्षा पास करने के बाद एक लम्बी प्रक्षिक्षण प्रक्रिया से गुजर कर ही "सी.ओ" या डी.एस.पी की पोस्ट मिलती है , जिसके लिए शायद परवीन आजाद शायद क्वालिफाइड नहीं हैं . लेकिन भावनातमक उफान के चलते और चंद महीनो पहले हुई शादी और अपने शौहर को शहीद होने का दर्द शायद उनकी भावनाओं को नहीं रोक पा रहा है .और उन्होंने इस पोस्ट की मांग रखी ! परवीन आज़ाद ये पोस्ट चाहती थी की शायद वो इस व्यवस्था में कुछ सुधार ला सके , शायद वो उस आतंक के पर्याय बने एक सड़ चुके सामन्ती समाज के पैरोकार एक तथाकथित सामंती नवाब के आतंक को चुनौती दे सके। परवीन आज़ाद ये पोस्ट चाहती थी की शायद वो इस प्रकार के हादसात को रोक सके या कम कर सके , परन्तु अगर आप आज भी उनके सारे टीवी इंटरव्यू को खंगाले तो आपको कंही भी ऐसा नहीं लगेगा की वो किसी लालच में आकर ये पोस्ट चाहती है , वो सिर्फ एक भावनात्मक जिद के चलते ये मांग कर रही है उन्होंने इस खोखली व्यवस्था के प्रति अविश्वास जताते हुए उस सीबीआई टीम के लोगो की जांच करने वालो के बायो डाटा भी देखने की मांग राखी ताकि बिना कसी पक्षपात के दोषी को बचने का मौका न मिल सके ,,,इसमें कुछ भी गलत नहीं है , हां ये बात अलग है की सरकारी नियमो के तहत ऐसा करना शायद संभव नहीं है .
उनकी मानसिक हालत कुछ ऐसी ही है जैसे की किसी इंसान के पिता को कोई गुंडा मार दे तो वो कानून , समाज और अपनी जान की परवाह किया बिना ये चिल्लाता है की मैं उस खूनी को सरे आम मार डालूँगा ! हालाँकि परवीन ये नहीं कह रही है क्योंकि वो एक पढ़ी लिखी महिला है लेकिन कमतर जिन्द्गाई तजुर्बे और गाँव वालो की सलाह के चलते शायद वो इस प्रकार की मांग रख रही है।
मगर मसला यहाँ परवीन की मांग का नहीं बल्कि उन लोगो की मरणासन्न हो चुकी अपने स्वार्थ की सडांध मारती सामंती मानसिकता का है जो इस मसले में भी हिन्दू मुस्लिम का नजरिया रखते है और जिया उल हक की शहादत को शहीद हेमराज से तुलना करके परवीन आज़ाद के चरित्र हनन और उनके बारे में गन्दी गन्दी बाते कर रहे है। जिया और हेमराज दोनों भारत के ही सपूत थे , दोनों शहीद हुए और दोनों के परिवारों ने दुःख झेला . शहीद हेमराज की विधवा पत्नी ने भी रोते रोते अपने लिए उचित मुआवजे की मांग रखी थी और पेट्रोल पंप देने की बात कही थी . और बात दीगर की है की उन्हें राज्य सरकार , केंद्र सरकार ओए सेना की तरफ से अब तक 46 लाख रुपये मिल चुके है , पेट्रोल पंप मिलने का काम प्रक्रियाधीन है और गाँव में पक्की सड़क और उनके नाम पर स्कूल भी बनाया जाएगा . तो क्या हम ये कहे की शहीद हेमराज विधवा ख़ातून अपने पति की लाश की मार्केटिंग कर रही थी ....जी हां येही वो हर्फ़ है येही वो शब्दावली है जो आजकल के तथाकथित विद्वान् लोग परवीन आज़ाद के लिए कर रहे है.
आज इन्टरनेट और गूगल पर हर जगह परवीन आज़ाद के नाम की हजारो सूचनाये मिल रही है,,,,,लोगो ने इसका ठीकरा भी परवीन के सर ही फोड़ डाला , जैसे की इसके लिए भी वोही जिम्मेदार है . राजनितिक दलों के नेता उनसे मिलने और अपनी संवेदना प्रकट करने जा रहे है ,,,इसमें भी परवीन आज़ाद को मुसलमान होने का दंश झेलना पड़ रहा है. कुछ मुस्लिम धर्म गुरु भी अपने नंबर बनाने और राजनितिक फायदे के लिए वहा पहुच गए,,इसका जवाब भी परवीन से ही माँगा जा रहा है . परवीन लाश की मार्केटिंग कर रही है , मौत की ब्लैक मेलिंग , परवीन सेलेब्रेटी बनाना चाहती है वैगेहरा वैगेहरा .
ऐसा कहने और करने वाले ये इंसानी जज्बातो से महरूम वो लोग है जिन्हें ये तक एहसास नहीं की जिस औरत का तीन दिन पहले सुहाग उजड़ा हो , जिसके पति को एक जानवर से भी बुरी मौत नसीब हुई हो वो इतना दिमाग कहा से लाएगी और क्यों लाएगी , वो लड़की जिसने तीन दिन एक अन्न का दान खाए बिना रोते रोते विक्षिप्त और लगभग बेहोशी की हालत में गुजारे हो वो क्या ऐसे वक़्त में इतना सोच सकती है की मेरे लिया क्या पोस्ट चाहिए और क्या नहीं, लेकिन जैसा की मैंने कहा की वो एक भावनात्मक जिद के चलते ऐसी मांग रख रही है जिसके पीछे की सोच ये है की अगर उन्हें ये पोस्ट मिल जाए तो वो शायद इस जुल्मो दहशत के कारोबार को शायद कुछ कम कर सके . यकीनन ये अमली तौर पर सही नहीं है लेकिन बिना किसी की परिस्तिथि और जज्बात समझे बिना शोशल साइट्स पर ऐसी भद्दी भद्दी बाते लिखना जितना शर्मनाक है उतना ही अमानवीय भी है . अमानवीय मैंने इसलिए लिए कहा क्योंकि एक शहीद की बेवा बन चुकी परवीन के चरित्र तक पर लोग उंगली उठाने शुरू हो गए है .
इन लोगो का मानसिक दिवालियापन यहाँ भी नहीं रुका, इससे बढ़कर ये लोग उस इंसान के सपोर्ट में खड़े हो गए जिसका पूरा इतिहास ही आपराधिक गतिविधियों से भरा पड़ा है , जिसने अपने व्यावसायिक और राजनितिक फायदे के लिए खुद अपनी राजपूत जाती ही नहीं बल्कि अपने खानदान तक के लोगो से जमकर लड़ाइया करी है। बीजेपी के नेता पूरण सिंह बुंदेला और अपनी ही एक रिश्ते की बहन रत्ना सिंह के साथ जिसकी खुनी दुश्मनी है , जो एक और इमानदार पोलिस ऑफिसर आर एस पाण्डेय के क़त्ल के केस में सीबीआई के शक के घेरे में है , इस ऑफिसर ने इस तथाकथित राजा के घर में रेड़ मारी थी .
इतने पर भी कुछ लोगो द्वारा इसका साथ देने का कारण ये है की , ये लोग उसी सामंती गुलामी से भरी मानसिकता के गुलाम है जिसमे हर इंसान सही गलत को भुला कर सिर्फ और सिर्फ अपने जातिगत ,आर्थिक और धार्मिक फायदे को देखता है और अपनी इसी सहूलियत के हिसाब से अपना पक्ष चुन लेता है .
अगर शहीद होने वाले का नाम "जिया सिंह चौहान" होता तो येही लोग फिर शायद इस राजनितिक रंग देकर इन्हें समाजवादी पार्टी के होने की सजा के तौर पर खुद के कर्मो की सजा बताते, या फिर शायद दोनों राजपूतो में से ज्यादा रसूख रखने वाले का साथ देते .
अगर शहीद होने वाले का नाम "जिया लाल त्रिपाठी" होता तो शायद ये लोग इसे राजपूत और ब्राह्मण के नाम पर लड़ते .
अगर शहीद होने वाले का नाम " जिया लाल वाल्मीकि" होता तो ये लोग शायद उच्च जात और नीची जात के नाम पर लड़ते .
नाम कोई भी हो पर ये तय है की इस घटना को ये धरम और जात के नजरिये से देखकर लड़ते जरूर , शायद येही इस समाज की सामंती फितरत और हिन्दुत्ववादी संस्कारों का दोगला जैविक गुणधर्म है जिसकी वजह से सैकड़ो सालो तक शोषणकारी शक्तियां भारत की जनता को लूटती रही, आज भी लूट रही है.... और आगे भी लूटती रहेंगी !
i have given your post's link here -भारतीय नारी
जवाब देंहटाएंplease visit .
धन्यवाद शालिनी जी ,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद की आप इसे और लोगो तक पहुचने में मदद कर रही है .
मुझे लगता है की इस घ्रणित मानसिकता को और बढ़ने देने से रोकना जरूरी है,,,तभी मैंने ये लेख लिखा।
आपका एक बार फिर धन्यवाद .
विश्वनाथ
आपकी ये पोस्ट ऐसी घृणित मानसिकता को बढ़ावा देने से रोकने में बहुत ही लाभदायक है.....
जवाब देंहटाएंमैं आपकी ये पोस्ट अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर रहा हॅूं एक बार मेरे ब्लॉग पर पधारे..... धन्यवाद
जवाब देंहटाएंsarthak post .aabhar
जवाब देंहटाएं???????????????????????????????????????????????????
जवाब देंहटाएंJiya ki vidhva parvin azad ne apne sasur yani ziya ke pita par mukadma karke LIC ke un paison par dava kiya hai jiske nomini ziya ke pita hain.
जवाब देंहटाएंVishwanath ji Blog likhne ke bad kya kya ghatit hui hai jara pata kar aiye.
Ajkal to logo par dhara ke viprit likhne ka mauka chahiye.
Ek Bar ziya ul ke pita ka samachar le aaiye tab parvin azad ke bare me likhiyega. INTEZAR KARUNGA APKE NAYE POST KA.
प्रिय राजेश रंजन जी ,
जवाब देंहटाएंआप ब्लॉग पर आये और अपनी बेबाक टिपण्णी दी , मुझे बहुत अच्छा लगा .
एक लेखक को उसके लेख पर अगर ऐसी ही तल्ख़ टिपण्णी मिल जाए तो ये उसके लेखन और चिंतन में बहुत सहायता करती है . तो सबसे पहले तो आपके ब्लॉग भ्रमण और टिपण्णी के लिए धन्यवाद।
अगर आप ये पोस्ट दोबारा ध्यान से पढ़े तो पोस्ट का पूरा मजमून आपको समझ में आएगा की ये पोस्ट मूल रूप से परवीन आजाद के बारे नहीं है लेकिन उसको आधार रखते हुए समाज के लोगो के बारे में ज्यादा है ! ये पोस्ट ये दर्शाती है की आज के समाज में लोग किसी घटना को देखने के लिए कैसा नजरिया अख्तियार करते है . ये पोस्ट दिखाती है की लोग कैसे हर घटना को अपने हिसाब से जाती धर्म के नजरिये को रखकर बात करते है और किस हद तक गिर जाते है .
बाकी रही बात जिया के पिता के पेंशन के झगडे और बाकी तमाम बातो की ...तो भाई मैंने कब इसके लिए परवीन आज़ाद का समर्थन कर दिया ???? परवीन के घर में उसके बाद क्या चाचा ताऊ की लड़ाई चली , क्या खाया क्या पीया ...इन सब बातो से मेरा कोई सरोकार नहीं है . मैं सिर्फ समाज और उसमे घटित होने वाली घटनाओं का विश्लेषण करके लिखता हूँ .
किसी के व्यक्तिगत झगड़ो और मामलो पर भला मैं क्यों लिखू . ऐसे तो आप हर शहीद के घर को खंगालिए ,,,हर घर में आपको प्रोपर्टी और पैसो के झगडे कही ना कही मिल जायेंगे . मैं कोई मायापुरी या मनोहर कहानिया नहीं लिखता दोस्त . मैं किसी भी घटना के सामंती लक्षणों, दिखावे के संस्कारों और समाज के दोगलेपन की पोल खोलता हूँ .
इसलिए आपसे निवेदन है की आप ये पोस्ट दोबारा पढ़े .....और समझे .
एक बार फिर आपका धन्यवाद ......आपकी टिपण्णी भविष्य में भी मिलती रहेंगी , इस आशा के साथ
आभार
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विश्वनाथ