मंगलवार, 19 मार्च 2013

आपकी पत्नी...आपकी सैलरी....और शोषण

(कार्ल मार्क्स द्वारा रचित दास कैपिटल और उनकी अन्य रचनाओं में उद्धृत  "बेशी मूल्य - अतिरिक्त मूल्य और श्रम के सिद्धांतो से प्रेरित " )

क्या आपने कभी सोचा है की आपकी सैलरी या पगार का निर्धारण कैसे होता है . मतलब की अगर आप 50 हजार रुपये पगार पाते है तो वो क्या ऐसी चीज है जिससे ये निर्धारित होता है की आपको 50 हजार रुपये मिलने चाहिए . कुछ लोग कहेंगे की एजुकेशन या एक्सपीरियंस है जिस वजह से सैलरी निर्धारित होती है ये बात कुछ हद तक ठीक है, लेकिन यदि आप नवीन जिंदल की सैलरी देखे जो की लगभग 7 करोड़ प्रतिमाह है तो शायद आप सोचेंगे की उसका तो एक्सपीरियंस और एजुकेशन तो अब्दुल कलाम आजाद से बहुत कम है फिर भी उसे इतनी सैलरी कैसे मिल रही है. इसका जवाब सिंपल है,,,क्योंकि नवीन जिंदल खुद अपनी कंपनी का मालिक है , वो अपनी और अपने जैसे तमाम खादिमो की सैलरी अपने हिसाब से निर्धारित कर देता है, येही बात अनिल अम्बानी , मुकेश अम्बानी , डॉक्टर त्रेहान , जगदीश खट्टर जैसे तमाम बड़े बड़े सैलरी पाने वाले लोगो पर लागू होती है .
लेकिन उपर दिए गए सारे मिसालो से ये अब भी साबित नहीं हो पाया की किसी इंसान की सैलरी कैसे निर्धारित की जाती है या की जा सकती है। इसके लिए हमें बहुत निचले स्तर से जाकर तफसरा करना पड़ेगा . पहले हमें ये समझना पड़ेगा की आखिर सैलरी होती क्या है , या तनख्वाह नाम की चीज है क्या ??
सैलरी या पगार वो " मूल्य " या "पूँजी"  का वो रूप होता है जो आपको अपना श्रम या मेहनत को बेच कर मिलता है। मतलब की आप अपने ऑफिस या काम पर जाकर जो भी अपनी शारीरिक और मानसिक मेहनत खर्च करते है उसके एवज में आपको जो पैसा मिलता है उसे सैलरी कहा जाता है . दूसरा सवाल ये है की  किसी की सैलरी या मेहनत के बदले में मिलने वाला पैसा आखिर क्यों मिलता है या "सैलरी" क्या होती है - ------
असल में सैलरी वो चीज होती है जिससे की हम अगले दिन काम पर जाकर दोबारा श्रम बेचने लायक ऊर्जा को इक्कठा कर सकने के लिए सुख सुविधाए जुटा सके और दोबारा रिचार्ज हो  अगले दिन मेहनत करने के लिये जा सके .

साधारण शब्दों में अगर कहा जाए तो - हमें अपने को लगातार ऊर्जावान बनाये रखने के लिए जिन चीजो की जरुरत होती है उन सुख सुविधाओं, खान पान, और तमाम चीजो को खरीदने के लिए मिलने वाला पैसा ही हमें हमारी सैलरी के रूप में मिलता है .
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तभी हम देखते है की एक साधारण मजदूर जो की सिर्फ शारीरिक श्रम करता है और दिन भर में ४-५ उत्पाद पैदा करता है उसकी सैलरी एक बड़े मैनेजर से काफी कम होती है क्योंकि एक बड़े वैज्ञानिक या मैनेजर की दिमागी मेहनत एक मजदूर से ज्यादा मूल्य का उत्पाद पैदा करती है और उस वैज्ञानिक को अपना दिमागी स्वास्थ्य और स्तर चलायमान और ऊर्जावान रखने के लिए एक मशीन पर काम करने वाले मजदूर से ज्यादा सुख सुविधाओं की जरूरत होती है .
(हालाँकि मजदूरी और श्रम के मूल्य को समझाने के लिए ये सभी उद्दरहण अपने आप में पर्याप्त नहीं है लेकिन जिस दिशा में मैं ये लेख को ले जा रहा हूँ उसके लिए ये भूमिका काफी है. )
तो आधारभूत सिद्धांत ये है की सैलरी वो होती है जिसे हम अपनी ऊर्जा को वापस पाने में खर्च करते है ,
अब देखने वाली बात ये है की जब आप काम से वापस आते हो और घर पर अपनी ऊर्जा को वापस लाने या अपने को रिचार्ज करने के लिए आराम , सुख सुविधाए को भोगना और खाना खाते हो ,,,तो उस काम में किसकी मेहनत लगती है ,,,या ऐसे कहे की आपको पुनः काम करने लायक बनाने के लिए जो आपको तैयार करता है वो कौन है .....?????
निश्चित रूप से वो एक औरत ही होती है , किसी घर में पत्नी के रूप में , किसी घर में बहन या माँ के रूप में .कुछ लोग जो अभी अविवाहित है वो भी कुछ एक साल बाद अपनी आजीविका के लिए जरुरी श्रम को रिचार्ज करने के लिए किसी न किसी औरत पर ही निर्भर होंगे . यहाँ अगर मैं सिर्फ आपकी पत्नी की बात करू तो येही वो औरत है जो आपको दोबारा से शक्ति संचय में करने में सहायता करती है जिससे की आप अगले दिन काम पर जा सको. आपके खाने से लेकर , भावनाए साझा करने और आपको शारीरिक और मानसिक संतुष्टि देने के लिए आपकी पत्नी ही वो मुख्य किरदार है जिससे की आप पूरे महीने ऊर्जावान रहकर सैलरी पाते हो.
तो अगर इंसान अपनी पगार को सही से विश्लेषित करे तो  उसकी सैलरी में से वो सिर्फ आधे का ही हकदार है ,और उसकी आधी सैलरी असल में उसकी पत्नी या घर की औरत की होती है /होनी चाहिए .
(यहाँ मैं ब्रोड पर्सपेक्टिव में बात कर रहा हूँ, मीन मेख निकाल कर या किसी स्तिथि विशेष के उद्दहरण देकर इनकी तुलना ना की जाए )
आज अगर इस नजरिये से देखा जाए तो औरत दोहरे नहीं बल्कि तिहरे शोषण का शिकार है।
# पहला वो शोषण जो उसे सामंती व्यवस्था वाले सामाजिक परिवेश से झेलना पड़ता है .
# दूसरा वो शोषण जो उसे खुद अपने घर में पुरुष सत्तात्मक समाज के लक्षणों से दो चार होते हुए झेलना पड़ता है .
# तीसरा शोषण वो है जो पूंजीपति एक मजदूर को कम मजदूरी देकर करता है, क्योंकि वो जब एक मजदूर को कम मजदूरी देता है तब वो एक औरत का अप्रत्यक्ष रूप से शोषण कर रहा होता है .वो औरत जो की पुरुष को अगले दिन काम करने की शक्ति अर्जित करने लायक बनाती है और उसे उसका पूरा मूल्य नहीं मिल पाता।
इसलिए आज हर कामगार इंसान को चाहे वो एक मजदूर हो या मनेजर, ये सोचना पडेगा की क्या ये व्यवस्था हमारे साथ न्याय कर पा रही है , क्या वो हमारे श्रम का हमें उचित मूल्य दे पा रही है , क्या आज हर मजदूर को उसके श्रम का उचित मूल्य मिलता है जिससे की वो अपने और अपने परिवार को ऊर्जावान और खुश रख सके, क्योंकि श्रम के शोषण का सीधा सीधा  मतलब औरत का शोषण होता है. आज ये उत्पादन व्यवस्था पूरी तरह निजिकरण पर टिकी हुई है जिसमे पूंजीपति का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ अपना मुनाफा बढ़ाना होता है जिसके लिए वो उन्नत मशीने लगा कर , मजदूरो की छटनी करता है या फिर उन्हें कम मजदूरी देकर और ज्यादा उत्पादन करवा कर अपना मुनाफा बढ़ता है। जिसका मतलब ये है की वो मजदूर ही नहीं वरन मजदूर के घर की औरतो का भी शोषण करता है .
औरतो के शोषण के खात्मे के लिए उत्पादन व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए की जिसमे मजदूर को उसके श्रम का सही मूल्य मिले और औरत को घर से बाहर निकाल कर सीधे सीधे उत्पादन व्यवस्था से जोड़ा जाए,  जिससे की वो मानव्  समाज की प्रगति और उत्पादन में भागिदार बने, उसे भी उसके श्रम का सही मूल्य मिले .वरना जब तक वो घर में रहेगी वो सिर्फ एक टूल बन कर रह जायेगी,,,,वो टूल जिससे की आप अपने को रिचार्ज करते हो ,,,अगले दिन काम पर जाने के लिये.
हमें इस निजी मुनाफे पर टिकी इस अर्धसामंती अर्धऔपनिवेशिक व्यवस्था को उखाड़ना पड़ेगा जो की औरतो को अपना माल बेचने के लिए इस्तेमाल करके ये भरम फैलाना चाहती है की आज औरते मर्दों के साथ कंधा से कंधा मिला कर चल रही है , दो चार सुनीता विलियम्स, ऐश्वर्या रॉय  और इंदिरा नूयी जैसी महिलाओं के उद्दाहरण देकर लोगो को भ्रमित किया जाता है की ये व्यवस्था संभावनाओं से भरी है और औरतो को आगे आना चाहिए . पर ये इक्का दुक्का उद्दहरण उन औरतो के है जो या तो खुद शोषक वर्ग से आती है या जो की उच्च माध्यम और उच्च वर्ग से सम्बंधित है .वो किसी भी प्रकार से आम जनता और समाज में रह रही महिला के शोषण और उत्पीडन से कोई सरोकार नहीं रखती .ना ही ये वो महिला वर्ग है जो सुबह 5 बजे उठकर किचन में जाती है और फिर दिन भर घर में पिसने के बाद रात को 11-12 बजे तक सबके सोने के बाद घर के बर्तन मांज कर और अगले दिन सुबह नाश्ते के लिए सब्जिया काट कर , फिर सोने जाती है .इसी समाज में हर रोज अनगिनत रेप , घरेलू हिंसा और सम्पूर्ण अफ्रीका महादीप में वेश्याव्रत्ति में शामिल महिलाओं की कुल संख्या से भी ज्यादा सेक्स वर्कर्स की भारत में मौजूद महिलाओं की संख्या इस व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है .   जिस तरह मानव समाज पुरुष और स्त्री के बराबर अनुपात से बनता है , उसी तरह व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई में औरतो की बराबर भागीदारी के बिना ये इन्किलाब भी पूरा नहीं हो सकता . व्यवस्था परिवर्तन की इस लड़ाई और हर प्रकार के शोषण से मुक्ति के लिए औरतो को क्रांति में ज्यादा से ज्यादा भागीदार बनाना ही एकमात्र उपाय है .
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अंत में कात्यायिनी जी की कविता की चंद लाइन ---

नहीं पराजित कर सके जिस तरह
मानवता की अमर-अजय आत्मा को
उसी तरह नहीं पराजित कर सके वे  हमारी अजेय आत्मा को,

आज भी वह संघर्षरत है ,नित-निरंतर उनके साथ
जिनके पास खोने को सिर्फ़ ज़ंजीरें ही हैं ,बिल्कुल हमारी ही तरह !






10 टिप्‍पणियां:

  1. .एक एक बात सही कही है आपने . आभार हाय रे .!..मोदी का दिमाग ................... .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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  2. शालिनी जी
    हमेशा की तरह आपका आभार मेरा उत्साह बढाने के लिए . आपकी वजह से ये लेख और लोग भी पढ़ सकेंगे ,

    धन्यवाद आपका .

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    1. Hi Vishnath, I am Amit from CADD Centre, if you have worked in CADD Centre then pl share your contact details.
      Amit Kumar
      amitkdelhi@hotmail.com

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  3. अति सुन्दर.बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.
    आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
    http://madan-saxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena.blogspot.in/
    http://madanmohansaxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena69.blogspot.in/

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  4. आदरणीय शाश्त्री जी एवं मदन जी .
    आप जैसे सीनियर लेखको का मेरे लेख पर टिपण्णी करना ही एक बहुत बड़ी बात है मेरे लिए , जो मुझे प्रोत्साहित करेगा अपनी गलतिया सुधरने के लिए , तथा मेरी लेखनी को और भी प्रगतिशील बनाने के लिए .
    आप सभी का शुक्रिया .

    मदन जी - आपके ब्लॉग बहुत ही सुन्दर है ,हलके फुल्के शब्दों में लिखी आपकी गज़लों में दिव्य काव्यात्मक सुन्दरता है .

    आभार
    विश्वनाथ

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  5. आदरणीय विस्वनाथ जी लेख तो बहुत सार्थक है निश्चित ही बधाई के पात्र हैं ...पर हमारे देस की यही तो विडम्बना है की यथार्त में कोई भी महिलाओं के प्रति अपना नजरिया बदलना नहीं चाहता हम औरों से उम्मीद करते हैं पर यही सुरुवात हम अपने घर से सुरु कर सकते है यदि माता पिता ही अपनी संपत्ति को बराबर बाँट कर बेटियों को मजबूती दें
    फिर सास ससुर बहु को सम्मान दें और पति उसे सामान अधिकार दे सके तो ..फिर जिन्दगी के मायने ही बदल जायेगे

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  6. आपसे सही कहा ममता जी .
    जो लोग कम पढ़े लिखे और सामंती प्रभाव में है अगर उन्हें छोड़ भी दिया जाए तो पढ़े लिखे और बड़े शहरो में रहने वाले लोग भी ऐसी शुरुआत कर दे तो समाज में परिवर्तन आने निश्चित है।
    लेकिन गहराई से देखा जाए तो लोग शहरो में तथाकथित उच्च जीवन तो व्यतीत कर रहे है लेकिन जब पिता की संपत्ति का प्रश्न आता है तो वो लोग भी सामंती समाज के हसाब से सोचने लगते है और अपनी बहन को ही दुसरे घर का बता कर उसे संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं देते ...आपकी बात से सहमत हूँ मैं !

    धन्यवाद की आपको लेख पसंद आया .

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  7. बहुत से अकादमिक सन्दर्भों से युक्त बहुत ही सारगर्भित लेख है.

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