शुक्रवार, 29 मार्च 2013

राजाओं और बाद्शाहो का इतिहास (असली वाला)


बचपन से आज तक हमें जो भी इतिहास पढाया या बताया जाता है वो राजाओं और बाद्शाहो का इतिहास बताया गया है, वो कुछ इस तरह होता था की महान अशोक ये था, अकबर वो था, औरंगजेब ऐसा था ,राणा प्रताप वैसा था और सारे इतिहास में जनता के योगदान का कही जिक्र नहीं होता . अगर बारीकी से देखा जाए तो इन राजाओं और बादशाहों ने आपस में जो लड़ाईया लड़ी वो अपने राज्य के विस्तार और अपने स्वार्थ के लिए ही थी। जो भी राजा ज्यादा सैन्य क्षमता रखता था वो आप पड़ोस के राजाओं को अपने मातहत रखकर उनसे वसूली के लिए कहता था, अगर दूसरा राजा मान जाए, तो सही, नहीं तो युद्ध शुरू हो जाता था। आज के समय में भी अगर आप साम्रज्यवादी देशो की विदेशनिति को देखे तो वे लोग अरब देशो में अपने कब्जे को लेकर अपने ही देश में विरोध को झेलते है , तमाम गरीब देशो में शोषण, अराजकता और आतंकवाद फैलाने की वजह से खुद अपने ही देश में जनता उनका मुखर विरोध करती है लेकिन फिर भी वो अपने पिट्ठू मीडिया, सूचना तंत्र और फिल्मो के द्वारा इसे राष्ट्रभक्ति से जोड़कर दिखाते है और जनता के आक्रोश को कम करने की कोशिश करते रहते है। ठीक इसी तरह सामंतवाद के जमाने में राजा महाराजा  और बादशाहो के सभी युद्ध अपने राज्य की विस्तारवादी नीतियों और आर्थिक फायदे के लिए लड़े जाते थे , जिन्हें बाद में हमारे इतिहासकारों ने कुछ इस तरह से दर्शाया की जैसे वो देशभक्ति से ओतप्रोत जनयुद्ध की घटनाएं हो . आपको किसी भी इतिहास की किताब में मेहनतकश जनता के योगदान और युद्ध के बाद  आये आर्थिक संकट को दूर करने के लिए जनता के दुर्दांत शोषण और उनपर लगाए जाने वाले करो का कोई विवरण नहीं मिलेगा . इतिहासकारों द्वारा सामन्ती युग का बहुत ही सतही तौर से वर्णन किया जाता है जिससे की वो सिर्फ एक राजा विशेष की शौर्य गाथा लगती है , की फलां बहुत वीर था , उसके पास बहुत बड़ी सेना थी , उसने उस राजा को हराया, लेकिन इन्ही राजाओं के द्वारा की जाने वाली ऐय्याशिया , धोखाधड़ी, छलकपट, व्यभिचार, जनता के शोषण की कोई भी कथा आपको इतिहास में नहीं मिलेगी। आपको इतिहास में राजाओं की इमारतों , मकबरों और हथियारों और युद्ध की गाथाये तो मिलेंगी लेकिन किसी भी रियासत में जनता के लिए शिक्षा , चिकित्सालय और अन्य सुविधाओं का ब्योरा नादारद मिलेगा। बाद में सांप्रदायिक मानसिकता के चलते भिन्न भिन्न राजनितिक दलों से सम्बंधित बुद्धिजीवियों ने अपने अपने हिसाब से हिन्दू और मुस्लिम राजाओं की भलमानुसता की गपोड़ कथाये लिख डाली .
भारत पर राज करने वाले अधिकतर रियासतों के राजाओं ने मुगलों के आने पर पहले तो उनका विरोध किया और काफी हद तक उन्हें रोकने में सफल भी हुए , परन्तु मुगलों की विराट सैन्य क्षमता के चलते सर्वप्रथम उन्होंने सुदूर पश्चिमोत्तर प्रान्तों पर कब्जा किया , फिर भारत के राजाओं ने खुद अपने स्वार्थ के लिए उनसे समझौते किये या फिर उनसे कुछ शुरूआती प्रतिरोध के बाद उनके मातहत राज करने के समझौते किये। और ये सिलसिला उस हद तक गया जहा पर परिणाम स्वरुप  14-15वी सदी के अंत तक भारत की लगभग सभी बड़ी बड़ी जागीरो पर मुसलिम बादशाहों का कब्जा हो गया . जैसे की दिल्ली ,रामपुर,लखनऊ , हैदराबाद , जूनागढ़ , मैसूर ,बंगाल, जयपुर , आगरा आदि आदि।
17वी शताब्दी के शुरूआत तक आधौगिक क्रांति के चलते ब्रितानी सभ्यता लगभग पूरी तरह मशीनों के निर्माण और उपयोग में पारंगत हो चुकी थी, बन्दूक , हथियार , मशीनों से चलने वाले जलयान , कपडा, लौह अयस्क और अन्य चीजे मशीनों से बनाने में वो लोग दुनिया में सबसे विकसित वर्ग के रूप में थे, इसी शक्ति के चलते उन्होंने विश्व के बाकी अविकसित देशो को कच्चे माल की लूट के लिए अपना उपनिवेश बना शुरू कर दिया . जब वे लोग भारत में प्रवेश किये तो यहाँ के कच्चे माल के भण्डार और प्राक्रतिक संसाधनों से भरपूर राज्यों को देखकर उनकी बांछे खिल गयी . भारत में राज करने वाले हिन्दू और मुस्लिम राजा और उनकी प्रजा अभी भी सामन्ती उत्पादन व्यवस्था में ही जी रहे थे और मशीनों से उत्पादन में कई सौ साल पीछे थे , सभी प्रकार का उत्पादन पूरी तरह हस्तकला पर आधारित था। सोने पर सुहागा ये था की सारे हिन्दू-मुस्लिम राजा आपस में ही अपने अहम् और छोटी छोटी बातो पर लड़ते रहते थे , लड़ाई की मुख्य वजहे राज्य विस्तार की महत्वाकांक्षाये होती थी ...या फिर "औरत" . अंग्रेजो ने इसी कमजोरी का फायदा उठा कर सभी राजाओं को आपस में लड़ना शुरू कर दिया , एक दुसरे के मतभेदों का फायदा उठाया और किसी एक राजा को सैन्य सहायता और बन्दूक, बारूद से चलने वाले हथियार देकर उसी के भाई या पडोसी राजा से लडवाया और बाद में दोनों राज्यों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। भारत में राज करने वाले राजाओं और बादशाहों ने भी अपने ढीले चरित्र और लालच के चलते अंग्रेजो से हर प्रकार के समझौते किये।  यहाँ तक की 1857 के विद्रोह के बाद जब अंग्रेज हुकूमत बहुत डर गयी थी, तब भी खुद भारत के कई हिन्दू और मुस्लिम राजाओं ने अंग्रेजो को भारत में अपने अपने राज्यों में वापस आकर व्यापार करने का निमंत्रण दिया,उनके जान माल की सुरक्षा और जनप्रतिरोध दबाने की गारंटी भी दी .और आपको आश्चर्य होगा की ये काम इतनी बड़ी बड़ी रियासतों के राजाओं ने किया ,,जिनके वंशज आज भी भारत की राजनीती में अहम् मुकाम रखते है .(ये दिखता है की भारत की जनता आज भी किस तरह सामन्ती मानसिकता में जी रही है ) .
1857 का विद्रोह ही ऐसा पहला संयुक्त विद्रोह माना जा सकता है जिसमे कई रियासतों के राजाओं ने एकसाथ मिलकर अंग्रेजो को भारतीय संस्कृति के प्रति शोषणकारी रवैय्ये को पहचान कर उसके खिलाफ विद्रोह किया था। लेकिन ये विद्रोह भी खुद भारत के ही कई गद्दार राजाओं और नवाबो की वजह से अंग्रेजो द्वारा कुचल दिया गया . 1857 से लेकर 1947 तक का काल कई जन विद्रोहों का काल रहा था जिसमे जनता ने खुद ही शोषणकारी शक्तियों के खिलाफ मोर्चा खोला जिसमे बिरसा मुंडा का विद्रोह, संथाल विद्रोह और तेलंगाना और तेभागा का किसान आन्दोलन प्रमुख रहे है ,ज्ञात रहे की ये विद्रोह हर तरह के देशी और विदेशी शोषण के खिलाफ हुए थे . इस काल में जनता और समाज में आमूलचूल परिवर्तन हुए और हमें भगत सिंह और साथियो का अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भी विद्रोह देखने को मिला, जो की पूरी तरह से शोषण पर आधारित सिस्टम को ख़तम करने के लिए था . भगत सिंह, आज़ाद, बिस्मिल ,अशफाक  और उनके तमाम साथी साम्रज्यवादी लूटेरो और उनके (देशी) हमदर्दों को अच्छी तरह से पहचान चुके थे इसीलिए वो देशी और विदेशी पूंजीपतियों के शोषण से मुक्त एक सच्चा जनतंत्र चाहते थे . लेकिन इस काल खंड के बीच अगर आप देखे तो इन तथाकथित राजाओं और नवाबो का आजादी की लड़ाई में योगदान लगभग शून्य था, इसके उलट ये लोग ब्रितानी हुकूमत की सहायता करते रहे , क्रांतिकारियों को पकडवाने के लिए मुखबरी करते रहे। जिसके एवज में ब्रितानी लोगो ने इनकी पेन्सन और ऐय्यशियो के लिए सुविधाए दी, या ज्यादा से ज्यादा इन्होने अंग्रेजो का विरोध किया भी तो सिर्फ और सिर्फ अपने सुविधाओं को कायम रखने के लिए। सम्पूर्ण एतिहासिक कालखंड में अगर सबसे ज्यादा किसी का शोषण हुआ तो वो भारत की आम जनता थी! लेकिन जिसने अंग्रेजो और बाकी शोषण कारी शक्तियों के खिलाफ संघर्ष शुरू किया वो भी जनता ही थी। उत्पादन और खेती को जिन लोगो ने उन्नत बनाया वो भी जनता ही थी, राजाओं ,नवाबो और अंग्रेजो ने जनता को सिर्फ और सिर्फ लूटा. जनता के हितो को ताक  पर रखकर अपने स्वार्थ और भोगविलास के लिए सारे समाज को अशिक्षा और अवैज्ञानिक सामन्ती संस्कारों से निकालने के लिए न ही किसी राजा ने कोशिश करी और ना ही अंग्रेजो ने।
इसलिए हमें ये समझना चाहिए की ये सारा समाज दो वर्गों में विभाजित रहा है ,,,एक वो वर्ग जिसका सत्ता और उत्पादन और कब्जा होता है , और दुसरा वो जो की इन उत्पादन के साधनों पर काम तो करता है लेकिन ये सत्ताधारी वर्ग उसे हड़प लेता है .
येही सत्ताधारी वर्ग पहले राजा नवाब और अंग्रेज हुआ करते थे,,,,और आज के समय में नेता , राजनितिक दल और पूंजीपति होते है। इसलिए किसी भी देश या समाज के इतिहास की सही व्याख्या करनी हो तो उसमे हमें जनता के योगदान को देखना ही पड़ेगा ....वरना ये राजा और नवाबो के किस्से कहानिया बच्चो को सुनाने और अपने आप के झूठे अहम् को पोषित करने के लिए तो अच्छी है। लेकिन ये इतिहास की अधूरी कपोल कल्पित कथाये समाज के समग्र विकास में हमेशा रोड़ा बनी रहेंगी 

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