बुधवार, 6 मार्च 2013

गणेश जी ने दूध पीया !.. "ज़िया -उल-हक़" शहीद हो गए !


शीर्षक देख कर आप चौक गए ना ?  लेकिन यकीन जानिए की गणेश जी के दुग्धपान करने और डी एस पी "जिया उल हक़ " की शहादत वाली घटना में अद्भुत समानता है .
हुआ यूँ की आज से लगभग 20 साल पहले अमेरिकी साम्राज्यवादियो ने एक एक्सपेरिमेंट करा था , उस एक्सपेरिमेंट का उद्देश्य ये जानना था की भारत की जनता अंधविश्वास के कितने गहरे गर्त में डूबी हुई है , और ये इसलिए किया गया की उन्ही दिनों भारत साम्राज्यवादियो द्वारा चलाये गए अभियान के तहत आर्थिक उदारीकरण और मुक्त बाजार व्यवस्था  के लिए हमारे देश को लूटने के लिए विदेशियों को आमंत्रित करना शुरू कर चूका था ! जैसा की ये सर्वविदित है की किसी भी देश में जब पूँजी की लूट शुरू होती है तो उसके खिलाफ संघर्ष भी शुरू हो जाता है, इसलिए उसी संघर्ष को दबाने के लिए जनता को जात पात धरम के नाम पर तो बांटा ही जाता है लेकिन साथ साथ ये भी जानना जरूरी होता है की उस देश विशेष के लोगो का बुद्धि का स्तर कितना है,,,क्या वो लोग हमारी लूट को समझ पायेंगे , या फिर उस लूट को किसी तरह हम इन दुर्बुद्धि लोगो को जायज ठहरा पायेंगे ?इसी साजिश के तहत 21 सितम्बर 1995 को अमेरिका के एक इन्टरनेशनल  मंदिर इस्कोन से एक अफवाह उडाई गयी की "भारत का एक भगवान् आज सुबह से दूध पी रहा है " और इस खबर को किसी तरह भारत में पंहुचा दिया गया . सबसे पहले दिल्ली के एक मंदिर में इस खबर पर मोहर लगाई की हांजी आज भगवान् दूध पि रहे है ,बस फिर क्या था चाँद ही मिनटों में ये खबर भारत के कोने कोने फ़ैल गयी और लोग अंधे होकर हाथो में दूध का लोटा लेकर मंदिरों में इकठ्ठा होना शुरू हो गए .भगवान् ने दूध पिया या नहीं पिया या क्यों पीया ये सब तो अलग बहस की बाते है , लेकिन हां ये प्रयोग की सफलता देख कर साम्राज्यवादी शक्तियों की बांछे खिल गयी . उनके लिए तो ये ऐसा ही था जैसे की कोई चोर किसी घर में चोरी करने के लिए घुसा और उसने देखा की घर के सभी लॊग अफ़ीम खाकर टुन्न बेसुध हुए पड़े है ...और चोर ने बड़े आराम से घर में लूट मचाई और चलता बना।
इस घटना के बाद पूँजी की लूट के माठाधीषों को ये समझ में आ गया की दुनिया की सबसे बड़ी मंडी बनाने जा रहा भारत के लोग पहले से ही अफीम के नशे में डूबे हुए है, और इन्हें लूटने में कोई परेशानी नहीं आने वाली .

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कट ------  कट ------ कट ...... सीन चेंज..............
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जगह - उत्तर प्रदेश
तहसील- कुंडा , गाँव- वलीपुर
घटना - पुलिस डी एस पी "जिया-उल-हक़ " की कुछ लोगो ने ह्त्या कर दी
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इस दुर्घटना का बैक ग्राउण्ड आपको मालूम ही है ,तो मैं सीधे इस घटना के बाद के माहौल पर कुछ रौशनी डालता हूँ। ये घटना और इससे जुडी कुछ बाते बड़ी पेंचीदा थी,,,,,,,जैसे की "मरहूम जिया-उल-हक़ एक मुसलमान थे, ह्त्या करने वाले और उनके आका लोग राजपूत थे , घटना के मुख्य आरोपी के खैरख्वाह राजा भैय्या राज्य सरकार में मंत्री थे , राज्य सरकार जो कुछ ही महीने पहले चुन कर आई है उनकी जीत में मुस्लिम समुदाय का बड़ा योगदान था, सरकार के विपक्ष में एक दल बीजेपी है जो की मुस्लिम विरोधी माना जाता है ,....वगैहरा .. वगैहरा . जिया-उल-हक़ की शहादत के बाद अगले दो दिन तक तो सभी लोग दिमाग और संयम की हद में रहे लेकिन तीसरे दिन के बाद से सब लोग तहजीब के दायरे से बाहर निकल कर कबड्डी खेलना शुरू कर दिए और गाहे बगाहे फिर से शोषण कारी शक्तियों को ये सन्देश दे डाला की हम लोग सुधरने वाले नहीं है और सारी  जिन्दगी आपस में लड़ते रहेंगे. ये कैसे हुआ ..आइये देखते है .


इस घटना के बाद सबसे पहले सभी लोग एकमत से ये मान कर चल रहे थे की ये घटना एक दबंग की गुंडई का परिणाम है जिसमे एक इमानदार ओफ्फिसर को अपनी जान गवानी पड़ी .और खुद सपा के समर्थक भी राज्य प्रशाशन  की इस ढील पर नाराज होते दिखे . कुछ बीजेपी और हिन्दूवादी देशभक्त लोग बुझे मन से इस घटना की निंदा तो करते रहे लेकिन मरने वाला एक मुसलमान था इसलिए एक दो कमेन्ट डाल कर जल्दी से इतिश्री कर डाली. और मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी बेचारगी पर अफ़सोस जताते हुए दिखे . और वो दिल्ली में दामिनी की ह्त्या के बाद हुए प्रतिरोध जताने के लिए बाकी देशवासियों की तरफ हसरत भरी निगाहों से देखते रहे . लेकिन असली कहानी शुरू हुई तीन दिन बाद, जब सब लोग हमाम में नंगे होने शुरू हो गए.  # सबसे पहले सपा और मुलायम सिंह समर्थक लोग इस घटना से घबराने लगे की कही जिया की ह्त्या से सपा का मुस्लिम वोट बैंक न खिसक जाए , क्योंकि पिछले चुनावों में मायावती की हार का मुख्य कारण येही था की उसके मुस्लिम वोटो का ध्रुवीकरण मुलायम जी की तरफ हो गया था, ठीक वैसे ही जैसे 2007 में मायावती ने मुलायम को इसी मुस्लिम धुर्विकरण के तहत पराजित किया था। क्योंकि मायावती का दलित वोट कभी भी उनके आलावा कंही और वोट नहीं देता और उनकी जीत को सुनिश्चित करने वाले मुस्लिम वोट ही होते है .

लेकिन मुस्लिम भाइयो के बार बार विरोध के कारण घबराहट के तहत सपा समर्थक मर्यादा में तो रहे लेकिन अंततः उनका सब्र का बाँध टूटा और वो खुल कर पार्टी के बचाव में आकर सीधे सीधे आक्रामक होकर कहने लगे. " रजा भैय्या को निष्काषित कर दिया है , जिया के घर वालो को 50 लाख और नौकरी दे दी गयी है , और सीबीआई की जांच होगी,,,,और आपको क्या चाहिए ????"

# दूसरी जमात में वो लोग आते है जिन्हें इस घटना के "राजपूत" प्रेम जाग उठा और वो राजा भैया के राजपूत होने की वजह से खुलकर उसका साथ देने लगे .
इन साथियो ने सही गलत को समझने की कोशिश करे बिना ही रजा भैय्या को शेर बता कर खुल्ले आम उनका साथ दिया, ये प्रेम शायद इसलिए भी है की जातिगत कम्पेटिबिलिटी और दबंगई की वजह से रघुराज प्रताप सिंह बीजेपी में एंट्री पाने के लिए परफेक्ट है . उन्हें सपा छोड़ने तक की सलाह दे डाली , कुछ ने कहा की सपा तो आज है , कल नहीं रहेगी लेकिन राजा भैय्या का जलवा तो कल भी था और आने वाले कल में भी रहेगा .इनके तर्क के अनुसार जिस किसी ने "राजा" पर उंगली उठायी ये उसे न्याय पालिका की दुहाई देकर उसे जज ना बने की सलाह देने लगे , कुछ भाई तो यहाँ पर भी नहीं रुके और धमकी भरे अंदाज में लोगो को ऐसे हड़काना शुरू कर दिया की जैसे वो राजा के साथ रहने वाले लठैत हो , और धमकी भी ऐसी  "की बेटे घर से उठा लिए जाओगे" ...भले ही उन्होंने आज तक  " राजा " को देखा भी ना हो . मतलब उन्होंने अपनी पूरी राजपुताना शूरवीरता यहाँ पर दिखा दी।

# तीसरी जमात में इस मुल्क के सबसे बड़े देशभक्त आरएसएस और हिन्दू ह्रदय सम्राट श्री नरेन्द्र मोदी के भक्त लोग आते है , जिन्होंने सीधे सीधे इस घटना को हिन्दू मुस्लिम से जोड़ मारा , "जिया"  की ह्त्या की वजह या इस अराजकता पर सवाल उठाने की बजाय वो ये सिध्ह करने में लग गए की , मरने वाला एक मुसलमान था , मुसलमान था ,मुसलमान था.उनके महान तर्क कुछ इस प्रकार थे.  "जब कुम्भ मेले में लोग मरे तो इतना बवाल क्यों नहीं हुआ "

"बाटला हाउस में शर्मा जी शहीद हुए तो उनके लिए इतना हल्ला क्यों नहीं हुआ "
"ये मुसलमान था इसलिए इसे इतना भाव क्यों दिया जा रहा है ,,,,बांग्लादेश में हिन्दुओ की ह्त्या पर लोग क्यों नहीं बोल रहे है ..""
और एक देशभक्त हिन्दू ने तो यहाँ तक कह डाला ..."ठीक हुआ यार एक और मुल्ला कम हुआ इस धरती से"

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खैर "जिया-उल-हक़ " शहीद हो चुके है , पुलिस में प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है और सियासत में हर राजनितिक दल इस घटना से अपने अपने फायदे को देख कर टिपण्णी दे रहे है।
लेकिन जो बात दीगर की है वो ये है की पूंजीवादी लुटेरो , उनके एजेंट राजनितिक दलों और पूंजीवादी शोषण को सही ठहराने वाले बुद्धिजीवी कलम घसीटो को ये घटना एक बहुत बड़े प्रयोग के तौर पर दिखी .प्रयोग ये की आप भारतीय समाज में जनता के बीच कोई भी ऐसी घटना करवा दीजिये, और फिर जनता उस घटना में से धर्मं ,जात, राजनितिक रुझान, क्षेत्रवाद जैसे मुद्दे  खुद-ब़ा -खुद ढूंढ़ कर आपस में ही जूतम पैजार शुरू कर देगी . लगभग ऐसे ही जैसे की दो अफीम के नशे में धुत्त इंसान सड़क पर आपस में लड़ते है और नशा उतर जाने के बाद फिर एक एक अफीम की गोली खाकर अपनी लड़ाई दोबारा चालू कर देते है। और इस बीच एक अफीम बेचने वाला पहले उन्हें ये नशा करवाता है और उनकी लड़ाई के दौरान उनके घर में घुस कर लूट पाट करके कल्टी हो लेता है .
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गणेश जी को पिलाया दूध आज भी नालियों में बह रहा है और जिया उल हक़ अपनी शहादत के 5 दिन बाद भी अपने मुल्क की जनता का ये हाल देख कर दुखी है। और जनता हमेशा की तरह एकजुट होकर व्यवस्था से लड़ने की बजाय जात, पात धर्मं , राजनैतिक दल, क्षेत्रवाद के पल्लू से चिपकी आपस में लड़ रही है. ठीक इसी समय पूंजीपति और उनके चाकर राजनैतिक दल इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को एक प्रयोग मान कर जश्न मना रहे है ! वैसे ही जैसे 1995 में गणेश जी के दूध वाले एक्सपेरिमेंट की सफलता के बाद मनाया था .इस स्वतः निर्मित प्रयोग की घटनाए अभी भी मुकरर्र है और आने वाले दिनों में इसके नए नए आयाम देखने को मिलेंगे

 बहरहाल ..
जात, पात ,धरम, क्षेत्र , अंधभक्ति और किसी भी स्वार्थ से परे  दिन रात शोषण  में पिसती भारत की मेहनतकश जनता की ओर से अपने भाई अपने दोस्त "ज़िया -उल-हक़ " को अश्रु  पूर्ण श्रधांजली।

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8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही उम्दा पोस्ट है डोभाल जी... हकीक़त को आईना दिखाया है आपने.. बेशक हम हिंदुस्तानियों की सबसे बड़ी कमज़ोरी यही है.... आपने जज़्बात पर कोई बस नहीं रहा है हमारा...

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  2. Read the articles but few things are not connected. The sacrifice of DSP has no relevance with Ganesha's drinking milk. Also you haven't mentioned the rumor of Killing Muslims in Burma which created havoc in India. It would be better if you also include the secrifice of two army men killed by Pak army. But somehow I observed Communist are always biased.

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  3. आप लोगो को ये लेख पसंद आया ..सह्रदय धन्यवाद .
    बेनामी जी आपने सही कहा की इस घटना का गणेश जी के दूध पिने से सीधे सीधे कोई सम्बन्ध नहीं है, लेकिन ये दोनों घटनाएं भारतीय जनमानस की सही और गलत को समझने की शक्ति की कमजोरी की दर्शाती है।
    गणेश जी को दूध पिलाने में बहुसंख्य लोगो ने अपनी अकल लगाए बिना ही सामंती डर के कारण इस बात के विरोध और इसकी अवैज्ञानिकता के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया, ठीक इसी अज्ञानता का परिचय हिन्दुस्तानियों ने जिया उल हक़ की घटना में दिया। होना ये चाहिए था की सब लोग मिल कर प्रशाशन से लड़ते , लेकिन सब लोगो ने इस घटना को अपने अपने हिसाब से मोल्ड करके आपस में ही लड़ना शुरू कर दिया।
    वर्मा और भारतीय सैनिको के मारे जाने की घटना भी एक अलग विचारणीय विषय है लेकिन उनको समाहित करने लेख बहुत लंबा हो जाता और शायद मैं अपनी बात सही तरीके से समझा नहीं पाता ...मैं ऐसा सोचता हूँ।
    कम्युनिस्ट पक्षपाती नहीं होते कम्युनिस्ट शब्द ही कम्यून से बना है मतलब एक जनसमूह , तो जो लोग सही से कम्युनिस्ट विचारधारा को समझते है वो हमेशा अवाम के साथ होते है और उनकी कोशिश अवाम के जात धरम के झगडे मिटा कर उन्हें एकजुट करने की होती है , हां वो जनता को बरगलाने वालो पर जरूर थोड़े सख्त रहते है .

    आपकी बेबाक आलोचना के लिए आभार .
    Vishvnath


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  4. अपना देश ऐसी ही ही तमाम विडंबनाओं से भरा है -दोगलेपन से भरा है -अच्छा लिख रहे हैं!

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  5. धन्यवाद सर ,
    आपके शब्दों ने मेरा उत्साह बढ़ा दिया .

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  6. Aur jiske ghar me do bhaiyon ki lash padi thi unke bare me bhi to likho.


    Aur han dobhal ji Nakli communist.
    Communist ke kaun si vichardhara me likhi hai ki awam ke do jawan bhaiyon ki lash girane ya girwane wali police ke paksh me kaside padhe jayen.

    Kam se kam communiston ko badnam mat karo.dharm adharit ya yun kahun muslim adharit kalam ka nam sampradayik hona chahiye aur aap ek muslim sampradayik hain.

    Jis vyakti ko ek hi ghar me do jawan bhaiyon ki lash na dikhe vo kya nishpaksh likhega.

    Aur Ye Brahmanwadi media Jo dikhayega vahi to aap likhenge DiLi me baithe bhaithe.

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  7. आदरणीय रन्जन जी ,
    आप किन दो भाइयो की बात कर रहे है ?
    और अगर कर भी रहे है तो आपने कैसे मान लिया की मैं उनके खिलाफ या पक्ष में हूँ .वैसे तो मने हजारो घटनाओं के बारे में नहीं लिखा ....तो आपके हिसाब से मैं उन सबके खिलाफ हूँ ????
    दूसरी बात मुझे नकली कम्युनिस्ट कहने से पहले आप अगर मुझे सिर्फ ये समझा दे की कम्युनिस्ट या कम्युनिज्म होता क्या है , तो मुझे आसानी होगी आपके आरोप झेलने में .
    मैं जानना चाहता हूँ की मुझे नकली कम्युनिस्ट घोषित करने से पहले आपको इस विचारधारा के बारे में कुछ पता भी है की नहीं ??
    सहायता कीजिये मेरी .....आप चाहे तो फेसबुक में किसी ग्रुप में पोस्ट करके मुझे टैग कर दीजिये ,,,वहाँ मिलते है आपसे .

    धन्यवाद
    विश्वनाथ

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