शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

अरविन्द केजरीवाल - "क्रांतिकारी" या जनता के गद्दार

अरविन्द केजरीवाल  - "क्रांतिकारी" या जनता के गद्दार 

पूंजीवादी शोषण के खिलाफ जब जब जनता ने एक साथ मिल कर आंदोलनो कि शुरुआत करी है ,  तब तब शाशक वर्ग ने उसे तोड़ने  के नये नये तरीके ईजाद  किये है और काफी हद  तक सफल भी रहा है।
ये तरीके कई तरह के हो सकते है , पर अधिकतर ऐसे आन्दोलन को कुचलने का सबसे सस्ता और आसान रास्ता होता है फसिस्म , जिसमे जनता शोषक वर्ग के खिलाफ एकजुट होने से पहले ही उसे जात पात , रंग, नस्ल, धर्म क्षेत्रवाद के नाम पर आपस में अंतर्विरोध करके लड़ा दिया जाता है,जनता अपने सामयिक फायदे के लिए कसी भी एक राजनेता या पार्टी के साथ हो लेती है ,और  पूँजीवादी लुटेरे के खिलाफ लड़ने की बजाय आपस में ही लडती रहती है
इसके आलावा गन्दा कल्चर भी एक मुख्य हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है जिसका टारगेट मुख्यतः युवा वर्ग होता है जिसमे उसके सोचने समझाने की शक्ति को कुंद करके उपभोक्तावादी बना दिया जाता है, तब युवा वर्ग देश और जनता की समस्याओं के बारे में सोचने की बजाय नशे बाजी , डिस्को कल्चर ,KFC बरिस्ता जैसी जगहों पर बैठना अपनी शान समझाने लगता है ,या फिर अंध राष्ट्रभक्ति  पैदा की जाती है जिसमे लोग क्रिकेट जैसे खेल को देखते हुए किसी दुसरे मुल्क को गालिया देते हुए, रंग दे बसंती ओर साडा हक एत्थे राख जैसे गाने  गाते हुये उसे देशभक्ति समझ बैठते है।
लेकिन इन सबसे खतरनाक और दुर्दांत हथियार भी होता है। जिसका 20-21वी शताब्दी में सबसे ज्यादा इस्तेमाल हुआ है जनता की क्रांतिकारी ताकत को तोड़ने के लिए। उसे समझने के लिए हमें थोडा रुकना पड़ेगा।

ये सब जानते है की मानव समाज में जनता ही मुख्य कारक होती है जो किसी भी सामाजिक बदलाव के लिए जिम्मेदार होती है, बिना जनता के साथ के कोई भी राजनेता , क्रांतिकारी या धर्म गुरु आपने आचरण या प्रक्टिस से समाज को थोड़े समय के लिए प्रभावित तो कर सकता है लेकिन  से समाज को नहीं बदल सकता. इतिहास गवाह है जब जब जनता ने अपना असली रूप दिखाया है तब तब इतिहास बदला है। ये जनता की ही ताकत थी की रूस की जनसेना ने रेड आर्मी के साथ मिलकर हिटलर को जर्मनी के बर्लिन में घुस कर मार दिया था। येही वो ताकत है जिसके तहत दुनिया की सबसे ताकतवर और तकनिकी रूप से उन्नत अमेरिकी सेना को वियतनाम की जनता  ने अपनी ठोकरों पर उड़ा  कर रख दिया था।
जनता के शोशण मुक्त समाज कि स्थापना के लिए पहला कदम एक सफल नवजनवादी क्रांति का होना जरुरी कदम है, कोई भी सुधारवादी आन्दोलन सिर्फ सुधार या कुछ नियम  कानून या संशोधन ही करवा सकता है लेकिन पूँजी की इस दुर्दांत लूट और इसे बनाए रखने वाले लोगो को पूरी तरह हटाना ऐसे आंदोलनों से कतई संभव नहीं है . और जब जब ये पूंजीवादी लूट पाने चरम पर पहुचती है तब जनता सच्चे क्रांतिकारी नेतृत्व में आक्रोशित होकर सडको पर उतर आती है ,
भारत की जनता भी  आज ऐसी ही साम्रज्यवादी लूट के मकडजाल में फंसी हुई है। राजनितिक अस्थिरता, महंगाई , गरीबी और आर्थिक असमानताओ के चलते  और एक सम्पूरण क्रांति की संभावनाए प्रबल है , जनता में आक्रोश भी है और देश के अलग अलग इलाको में आन्दोलन भी चलते रहते है।
लेकिन येही संघर्ष रत जनता के आन्दोलन में वो  बिंदु होता है जहा पर  कुछ गलत लोग लोग एंट्री करते है और पूरे आन्दोलन को एक सुधारवादी आन्दोलन में बदल डालते है .
तो जनता की ताकत को तोड़ने का सबसे अच्छा और सुरक्षित उपाय  होता है की दुश्मन खुद ही जनता के बीच में शामिल हो जाए,बिलकुल उनके जैसा ही बन जाए. और उनके जनान्दोलनो में हिस्सा ले ,उनके साथ सडको पर उतरें , पुलिस के डंडे भी खाए ,जेल भी जाएँ ,उनके बीच गहरी पैठ बना लें , और धीरे धीरे सारे आन्दोलन को अपने हाथ में लेकर अंतिम समय में पूरे आन्दोलन को अप्रत्यास्चित रूप से किसी और दिशा में मोड़ दे।
ये लोग अपनी तार्किक शक्ति और व्यक्तित्व से जनता को बरगलाने में कामयाब होते है ,और उन्हें समझाते है की किसी हिंसा की जरुरत नहीं है , किसी व्यवस्था परिवर्तन की भी जरुरत नहीं है, बकाया इस सिस्टम में भी अभी गुंजाईश ही सुधरने  कि , बल्कि हम खुद इसी व्यवस्था में सुधार करके या जनता का दवाब बनवा कर सत्ता वर्ग को कुछ नियम कानून बनवाने में मजबूर कर सकते है ,या आंदोलनों के जरिये हम भरष्ट नेताओं को न्याय्लायाय के जरिये सजा दिलवा सकते है, संक्षेप में बस ऐसा समझ लीजिये की जो जनता सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए लड़ाई लड़ रही होती है उस समय ये लोग उसे एक सुधारवादी आन्दोलन में तब्दील कर देते है .तो अंत में जनता इस सुधारवादी आन्दोलन को अपनी जीत मान कर खुश हो जाती है लेकिन पूँजीपतियो के द्वारा जनता का शोषण बदस्तूर चलता रहता है. अंततः ये  भोली भाली  जनता के साथ किया गया सबसे जघन्य अपराध होता है.
अरविन्द केजरीवाल और उनके साथ उनकी पूरी टीम इस प्रकार के आंदोलन करवाने और जनता के गद्दारों में नंबर एक स्थान पर है। 
ये काम कैसे और किस उद्देश्य के लिए करते है ये हम बाद में देखेंगे पहले थोडा उनके बारे में जान लेते है।
पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई और फिर बाद में सिविल सर्विस  की परीक्षा पास करने के बाद  अरविन्द का कैरियर काफी स्मूथ रहा  और लगभग कोई भी बड़ी आउट ऑफ़ दा बॉक्स सफलता से भरा नहीं रहा है, वो 1991 में IRS - Indian Revenue Service में नियुक्त हुए और फिर अगले साल भी कोशिश करने पर वो IPS के लिए रैंक सुधार नहीं पाए और फिर IRS नियुक्त हुए, जो की सरकारी हलको में एक बड़ा मलाईदार पद माना जाता है .
10 साल की शांति पूर्वक सर्विस के बाद जनवरी 2000 में उन्होंने अवकाश लेकर एक NGO परिवर्तन की स्थापना करी और फ़रवरी 2006 में परमानेंट नौकरी छोड़ कर पूरी तरह परिवर्तन के लिए काम करने लगे,,ज्ञात रहे की उन्होंने नौकरी एकदम मग्सेसे पुरूस्कार मिलने का पक्का होने के बाद ही छोड़ दी .शायद वो इ के इन्तेजार में थे। बहरहाल। उन्हें अवार्ड मिला Ramon Magsaysay Award for Emergent Leadership(2006). .
फोर्ड फाउंडेशन वोही संस्था है जो की रमन मग्ससे पुरूस्कार को फंडिंग करती है,  तभी से उनके उठाये हर कदम और आन्दोलन में फोर्ड फाउंडेशन का हाथ है जो की मग्सेसे अवार्ड की आर्थिक पितृ संस्था है .
फिर अरविन्द ने एक और मग्ससे अवार्ड विजेता मनीष शिशोदिया के साथ मिलकर 1999 में  "कबीर" नामक संस्था की भी स्थापना करी जिसे अब तक निम्न लिखित राशि फोर्ड फाउंडेशन से प्राप्त हो चुकी है।
2005-2006     -   Rs . - 43,48,036/-
2006-07               Rs.3205970
2008-09               $1,97000
फिलहाल निचे मैं वो राशी दे रहा हूँ जो की खुद " कबीर " ने घोषित कर रखी है
Sl NoYearTotal amount of FC received
1        2005-06         4374117*
2       2006-07          3205970
3       2007-08         0
4        2008-09        7973078
5       2009-10         6075149
6      2010-11          573578
7     2011-12           0
8      2012-13          0
विश्व क्रांतियो के इतिहास में एक भी क्रांतिकारी ऐसा नहीं मिलेगा जो किसी विदेशी संस्था से जनसेवा के लिए पैसा लेता था और अपने देश में क्रांति को अंजाम तक पहुंचा पाया , और फोर्ड फाउंडेशन , हेनरी फोर्ड के द्वारा स्थापित संस्था है जो की पूरे विश्व में सामाजिक कार्यो के लिए फंडिंग करती है. लेकिन असल में वो अपने एजेंटो  के द्वारा  विश्व के हर कोने में पनपने वाले क्रांतिकारी आंदोलनों को भटकाने का काम करती है या कहे की उन्हें मात्र सुधारवादी आन्दोलन में तब्दील करने का काम करती है .जाहिर है इस काम के लिए वो उन लोगो को चुनती है जो उसी देश , भाषा ,शक्ल और रंग वाले हो,,,,इसके लिए पहले वो उन्हें मग्ससे जैसे पुरुस्कारों से नवाजती है और फिर जनता के बीच उतार देती है उनके आंदोलनों को हाई जैक करने के लिए .ज्ञात रहे की 2 साल पहले अन्ना के आन्दोलन से शुरुआत करने वाले अरविन्द और बाकी टीम के सदस्यों को मिला कर कुल 5 लोग मग्ससे पुरूस्कार विजेता रहे है. जिनमे से अब कुछ लोग शायद अलग हो चुके है .

अब देखते है की भारत में जनता की क्रांतिकारी ताकत को कुंद करने में अरविन्द केजरीवाल का क्या रोल है । आज जबकि जनता का मोह कांग्रेस से भंग हो चूका है और बीजेपी भी कांग्रेस की ही तरह है भ्रष्टाचार डूबी हुई है ,तब जनता को ऐसे राजनितिक दल या इंसान की जरुरत है जो की  ये आस जगा सके की अभी भी देर नहीं हुई है, और हम लोग है जो इनसे अलग कुछ कर सकते है . और अगर कुछ भी न कर सके तो समीकरण तो बिगाड़ ही सकते है जिससे की किसी भी दल की सरकार बहुमत से ना बन पाए और हमारा दल भी उसी भीड़ में शामिल होकर संसद पहुच जाए, ताकि जनता अगले 5 साल और इन्तेजार करे की शायद अगली बार अरविन्द जी एंड पार्टी  और मजबूती से उभरेंगे और तब इस व्यवस्था में सुधार शुरू हो जाएगा। और बीच बीच में किसी न किस राजनेता या अम्बानी टाइप के ओलोगो की पोल खोल करते हुए जनता के सामने अपनी छवि बरकरार राखी जा सके।  लाँकि इस प्रकार के खुलासे से कुछ ख़ास नुक्सान नहीं होता।  जैसे कि अगर वो कोई राजनैतिक दल का नेता है तो उसकी बलि चढ़ जाती है या फिर कुछ समय के लिए निलंबित हो जाता है,या फिर उस पार्टी पर से कुछ लोगो का विश्वास उठ जाता है, या ज्यादा से ज्यादा  वो उसे वोट न देकर दुसरे लुटेरी पार्टी को चुन लेता है (मतलब अंत में जनता ही बेवक़ूफ़ बनती है)
और अगर वो कोई पूंजीपति है तो उसका तो कुछ बिगड़ ही नहीं पाता, आज भी हमारे सामने केजरीवाल , अदानी ग्रुप, वाड्रा और अम्बानी  का उद्दरहण सामने है जिनका केजरीवाल के खुलासे से शायद कोई नुक्सान हुआ है। और अम्बानी का नुक्सान हुआ भी होगा तो वो अगले शेयर बाजार में उतरते ही उस नुक्सान को पूरा कर लेंगे।इसी क्रम में केजरीवाल कभी भी इनफ़ोसिस के अधिकारियो का नाम नहीं लेंगे क्योंकि नारायण मूर्ति खुद उन्हें फंडिंग करते है फोर्ड के माध्याम से .

तो आज के युवा वर्ग को चाहिए की वो सिर्फ भावनाओं में आकर या अरविन्द केजरीवाल के  सिंपल और आम आदमी जैसे व्यक्तित्व से प्रभावित ना होते हुए हमें उनकी प्रक्टिस का गहन अध्यन करें। की आखिर उनका ग्राउंड वर्क क्या है ? अरविन्द जैसे इंसान जो की प्रशाशनिक सेवा में रह चूका है, और इस सिस्टम को अच्छे  से देखा है उसके लिए किसी भी भ्रष्ट राजनेता या उद्योगपति के खिलाफ सबूत इकट्ठे करना कोई बड़ी बात नहीं है। और आजकल जबकि अरविन्द के समर्थन में भी कुछ लोग है तो वो जंतर मंतर पर उनका खुलासा करके हलचल भी पैदा कर सकता है,लेकिन जरा गहराई से देखा जाए तो ये बाते तो भारत के हर इंसान को पहले से ही मालूम होती है,क्या आपको लगता है की भारत में किसी भी इलाके में विधायक या सांसद का चुनाव जितने के बाद सबसे पहले जनता के पैसे की लूट शुरू होती है , सरकारी ठेकों की बन्दर बाँट और राजकोष के धन को फर्जी तरीके से लूटने के लिए। ये बात शायद भारत के कोने कोने में बच्चा भी जानता होगा की हिन्दुस्तान के हर शहर और कसबे में सिर्फ कुछ रसूखदार और चुनिन्दा लोग ही बार बार विधायक या सांसद बनते है, एक दो अपवादों को छोड़कर .

तो जबकि ये व्यवस्था पूरी तरह सड़  चुकी हैं और इसमें सुधार की कोई भी गुन्जाइश करना सिर्फ और सिर्फ शोषक वर्ग को सहायता करना जैसा ही है, तो सिर्फ इसलिये उसका साथ देना  कि वो बीजेपी और कांग्रेस जैसा नहीं है और वो हर भरष्ट आदमी की पोल खोलता है अरविन्द की प्रक्टिस को सही ठहराने के लिए काफी नहीं है। बल्कि इसका मतलब आप भी बीजेपी या कांग्रेस के समर्थको  जैसी ही मानसिकता रखते हो जो कहते है की बीजेपी भी भ्रष्ट है लेकिन कांग्रेस जितनी नहीं और उसे मौका दिया जा सकता है। और आप कहते हो की अरविन्द तो भ्रष्ट ही नहीं है बल्कि वो तो भ्रष्टाचारियो की पोल खोलता है।।इसलिए उसका साथ दो. लेकिन अंत में ये देखिये की ये तीनो किस व्यवस्था को सपोर्ट करते है, कभी ये सोचा जाए तो बेहतर होगा,
क्या आज तक अरविन्द ने ईस मुनाफे वाले उत्पादन सिस्टम को उखाड़ फेकने की वकालत करी ? शायद नहीं, क्या आज तक उन्होंने विदेशी पूँजी निवेश पर रोक लगाने की बात करी ? बिलकुल नहीं।  वो सिर्फ  बात करते है की भ्रष्टाचार रोको, लोकपाल लाओ, ये कानून बनाओ, वो कानून मत तोड़ने दो, इनके भ्रष्टाचार को रोको, नेताओं के आपस में तालमेल को बेनकाब करो आदि आदि।और वो संसद में जाकर भी येही करने वाले है।
असल में जब भी कोई राजनितिक पार्टी सत्ता में आती है तो वो सबसे पहले पूंजीपतियों के पास जाकर उन्हें राज्य या देश के संसाधनों की लूट करने के दरवाजे खोलती है, जिसके लिए उन्हें मोटा माल मिलता है,या कह सकते है की वो कसी विशेष पूँजी गुट की सिर्फ दलाली करते है। पूंजीपति को इससे कोई फरक नहीं पड़ता की सत्ता में कौन है, कोई भी सत्ता में रहे वो अपनी पूँजी की लूट को चालू रखने के लिए सरकारे बनाते और बिगड़ते रहते है। या यू कहे की राजनितिक दल खुद उनसे पैसा मांगते है की हमें सांसद या विधायक खरीदने के लिए पैसा चाहिए. और जब् पूंजीपति ये पैसा दे देता है तो फिर सरकार बनाने के बाद वो सरकार उसके बिजनेस को बढाने के लिए पालिसी बनती है , या फिर उसे उसके उद्योग लगाने के लिए कोडियो के भाव संसाधन उपलब्ध करवाती है। और ये सब दुनिया की कोई भी शक्ति बंद नहीं करवा सकती जब तक की इन्टर नेशनल लेवल पर मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था में भारत अपनी स्वीकृति 20 साल पहले ही भर चूका है .तो ऐसे सड़ चुके सिस्टम को संसद में जाकर कैसे ठीक किया जा सकता है ये आज तक अरविन्द और उनकी NGO कंपनी नहीं बता पाई .
आगे चलें तो अरविंद RTI और RTR जैसे कानूनों की वकालत करते है .जिससे ये सन्देश जाता है की सिस्टम तो ठीक है और इसमें वो सारे प्रावधान भी है जिनका उपयोग करके आप देश की समस्याओं का समाधान कर सकते हो,लेकिन इसे चलाने वाले लोग खराब है .और जनता को ये बताने की कोशिश करते है की इस अधिकार का प्रयोग करो, और भ्रष्टाचार को रोको ,लेकिन क्या किसी भी RTI या RTR जैसे कानून से ये पता लगाया  जा सकता है की अंबानी, वेदांता ग्रुप या स्टरलाईट कंपनी ने भारत की खानों को खरीदने के क्या क्या तिकड़म भिडाये है ,या वाल मार्ट और टेस्को ने राजनितिक पार्टियों से क्या सौदेबाजी की है उनके भारत में प्रवेश करने के लिए .और अगर पता भी चल जाए तो अरविन्द का ग्राउंड वर्क क्या है की वो इसे रोक लेंगे? सिवाय जंतर मंतर पर एक दो दिन भीड़ इकठी करने और किसी एक नेता की पोल खोलने के आलावा ?
अब इस सिस्टम को तोड़ने के लये आप सम्पूर्ण क्रांति  करना चाहेंगे या फिर एक सुधारवादी आन्दोलन करके दो चार नेताओं या पूंजीपतियों को जेल करवा कर ,सिर्फ दिल को खुश करने के लिए सामयिक राहत ,फैसला आपके हाथ है।
भारत की जनता बहुत भोली और अतिउत्साह्वादी है, वो किसी भी चकाचौंध में बड़ी आसानी से फंस जाती है , इसका सबसे बड़ा उद्दाहरण  आमिर खान है,जिसे सत्यमेव जयते प्रोग्राम के बाद मैंने कई सोसल साइट्स पर लोगो को उसे प्रधानमन्त्री बनाने की वकालत करते हुए सुना। अरविन्द केजरीवाल और उनके भ्रम जाल में उलझी जनता का हाल भी कुछ ऐसा ही है. ये मानसिकता शायद व्यक्तिगत स्तर तक तो ठीक है लेकिन एक राष्ट्र के लिए बहुत घातक है जहा पर कई धर्म जात के 120 करोड़ लोग रहते है। और जिनमे से 70 करोड़ लोग मात्र 20 रूपये प्रतिदिन पर अपना गुजारा करते है वो और उनकी नस्लें किसी सुधारवादी आन्दोलन से नहीं एक सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए की गयी क्रांति के बाद ही पनप पाएंगी।

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इन्किलाब जिंदाबाद

2 टिप्‍पणियां:

  1. I initially supported the Anna Hazaare campaign but when the likes of Kiran Bedi and Arvind Kejriwal came to the forefront, I knew there was something thatI just did not feel right about. Now a year later, I am happy I made the correct decision. Kejriwal and Anna parted ways and now are loggerheads with each other.

    While corruption is a major issue, the way campaign is totally focussed on the government corruption, is like looking at only one side of the coin. It is clear that private sector is far from being a reluctant partner and an abused victim, is actually an active partner in each and every scam. The corruption crusaders like Kejriwal and Anna did not say a single word on the Radia tapes that revealed how the major corporates and businessmen in India, like Tata and Reliance were using their financial clout to lobby for ministers they thought would further their interests. Is corruption only a bane of the government? Middle class, that envisions itself as the revolutionary mass, will vote and bribe provided the government does it for their greater benefit. A strong, clean and corruption free administration is their biggest nightmare. Why? Because the administration will see it to it that laws and regulations are duly complied with, that people do not get preferential treatment over the others and social and environmental laws are followed before anything is Oked.

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  2. कुछ मामले में अरविन्द केजरीवाल से सहमत नही हूँ लेकिन आप ने ब्लॉग में काफी अच्छी जानकारी साझा की है जिससे मैं सहमत हूँ ... लिखने के लिए धन्यवाद ...

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