मुझे अपनी समझ से
दुनिया को समझने में
अपने हिसाब से
अपने
 रास्ते पर 
चलने में 
अपने लिए 
अपने खयाल 
बुनने में 
अपने विचारों को 
अपनी ज़ुबान में 
कहने
 में 
अपनी मस्ती में 
बहने 
अपनी धुन में 
रहने
 में 
नहीं कोई दुविधा है....
मुझे 
सवाल पूछने 
जवाब मांगने 
तर्क करने 
उंगली 
उठाने 
सोचने समझने 
गुत्थियां सुलझाने 
अपने
 मानक 
खुद तय करने 
दोजख-नर्क के 
भय के 
बिना  
जीने और मरने 
आवाज़ उठाने 
और 
तुम्हें
 मानने 
या नकारने में 
सुविधा है....
मेरे
 लिए 
ज़ोर से हंस पड़ना 
हर अतार्किक बात पर 
व्यंग्य
 करना 
तुम्हारे तथाकथित 
अनदेखे 
अप्रमाणित
 ईश्वरों पर 
न जाना, न जताना 
भरोसा 
इन 
इबादत घरों पर 
परमकृपालु ईश्वर 
हमेशा मेहरबान खुदा 
के
 नाम पर 
तुम्हारे द्वारा 
किए गए
अपमानों 
दी
 गई गालियों 
और हमलों का जवाब 
मुस्कुराहट  
से
 देना भी 
एक कला है 
विधा है.....
और
 हां 
सच है तुम्हारा ये आरोप 
ईश्वर के (न) होने 
जितना
 ही 
कि मैं 
एक नास्तिक हूं.....
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मयंक जी की एक कविता - नास्तिको के ब्लॉग से साभार
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मयंक जी की एक कविता - नास्तिको के ब्लॉग से साभार
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