हम सभी ने बचपन में प्रारंभिक विज्ञान पढ़ा है, जिसने भी कोई प्रारंभिक शिक्षा ली है वो इंसान संसार जीव जन्तुओ का विकास और सामान्य भौतिकी के नियम से शायद ही अनभिज्ञ होगा। अगर इंसानी सभ्यता के प्रादुर्भाव से लेकर अब तक के विज्ञान को देखे तो ऐसा लगता है की मानव ने अत्यधिक प्रगति करी है,लेकिन एक के बाद एक रहस्यों को सुलझाने के बाद भी मानव तमाम और सवालों से घिरता गया और खोज अभी भी जारी है। खोजे जा चुके सिधान्तो के आधार पर अविष्कारों और साथ साथ विज्ञान के नये नियमो की खोज हमेशा चलती रहती है। आज जबकि हम ये तक जान चुके है की कणों को आपस में जोड़े रखने के लिए भी एक और कण हिग्स बोसॉन की जरुरत होती है, तब भी दुनिया के महान वैज्ञानिक सर स्टीफन हाकिंग्स ये कहते है की शायद इंसान भौतिकी विज्ञान के सभी नियमो को नहीं खोज पायेगा। जो की ये दर्शाता है की विज्ञान एक नितांत अंतहीन यात्रा है , जिसका सतत विकास करना ही मानव समाज के पास एकमात्र विकल्प है। क्योंकि ये दुनिया , आकाश गंगा और सारा ब्रह्माण्ड, तमाम रहस्यों और अनसुलझे सवालों से भरा पड़ा है. ये ब्रह्माण्ड जो की अदभुत है, अंतहीन है , सुन्दर है , हमेशा बदलते रहने वाला है , भयानक है , और हिंसक भी है।
कहने का मतलब है की विज्ञान एक ऐसी शाखा है जिसका चरित्र किसी भी परिधि में बांधा नहीं जा सकता, ये एक सतत विकसित होने वाली अंतहीन प्रक्रिया है। जब इंसान ने पहली बार अपने दोनों हाथो को एक कटोरे की तरह जोड़कर अंजुली बना कर पानी पिया होगा और ये जाना होगा की ये भी एक तरीका है पानी और तरल चीजो जो नियंत्रित करने का, विज्ञान शायद उससे भी कही पहले से ही शुरू हो गया होगा।या कह सकते है की ये सिर्फ वैज्ञानिक बोध का एक चरण रहा होगा जब आदिम समाज ने विज्ञान के सहारे अपना जीवन सरल बने की दिशा में एक कदम बढाया होगा।इसी विकास के क्रम के चलते समय समय पर मानव समाज में कई वैज्ञानिक पैदा हुए और उन्होंने विज्ञान के इन रहष्यो को खोजने में अपना अपना योगदान दिया जैसे की इस दुनिया को न्यूटन के दिये गति के नियम या अल्बर्ट आइन्स्ताइन और सर स्टीफन हव्किंस तथा ओर भौतिक वैज्ञानिको के दिये नियम विज्ञान की खोज का एक चरण है .मतलब ये नियम इस दुनिया मी हमेशा से हि थे , बस इन नामचीन ओर प्रखर वैग्यानिको ने ये नियम खोज कर मानव समाज को दे दिये. अब अगर हम कल्पना करे कि न्यूटन या अल्बर्ट आइन्स्ताइन और सर स्टीफन हव्किंस इस दुनिया में कभी पैदा हि न होते तो क्या मानव सभ्यता कभी इन नियमो से अवगत हो पाती .
इसका जवाब है -- "हां" . बस शायद इस स्तिथी मी ये हो सकता था कि इन्हे खोज्ने वालो के नाम शायद अलग होते जैसे कि प्रोफेसर शरद सक्सेना''s " Law of motion , और प्रोफेसर यशपाल कि आण्विक थ्योरी ...आदी आदी,
इस प्रकार दुनिया में हर चीज बदलती रहती है और वो सब विज्ञान की किसी न किसी शाखा के ज्ञात या अज्ञात नियमो से बंधी होती है। ज्ञात वो, जो की हमें पता चल चुके है, और अज्ञात वो जो की नहीं पता चले है या सकारात्मक रूप में कहे तो वो नियम जो हमें भविष्य में पता चलेंगे।
इसी तऱ्ह मानव समाज जो की हमेशा बदलता रहता है वो भी कुछ नियमो के तहत ही आगे की और प्रगति करता है या बदलता रहता है। इन समाज के नियमो की आज तक अलग अलग वैज्ञानिको / दर्शन शास्त्रियों ने अपने समय में अलग अलग रूप में व्याख्या करी है। परन्तु इन सभी व्यख्यायाओ में एक ऐसी चीज का समावेश था जिसकी वजह से हम इन समाज के बदलने वाले नियमो को विज्ञान की संज्ञा नहीं दे सकते। क्योंकि विज्ञान हमेशा प्रमाण और तर्कों के सहारे ही परखा जाता है,जैसे की अगर सर आइजक न्यूटन ये कहते की "कोई भी गतिमान बस्तु तब तक नहीं रूकती जब तक की उस पर कोई बाह्य बल ना लगाया जाए और गतिमान चीजे फिर भी रुक जाती है क्योंकि एक घर्षण बल हमेशा गति के विरुद्ध काम करता है "" तो इसे आप एक विज्ञान मानते है क्योंकि गति के सिद्धांत और घर्षण बल को भी न्यूटन ने विभिन्न प्रयोगों और उद्दराह्नो से प्रतिपादित किया था।और इस सिधांत को हम अपने दिन प्रतिदिन के अनुभव से महसूस भी करते है।
लेकिन आप इसे विज्ञान नहीं बोलते अगर इसी सिधांत को न्यूटन ने कुछ ऐसे दिया होता "कोई भी गतिमान बस्तु तब तब तक गतिमान रहती है अब तक इश्वर उसे चाहता है की वो चलती रहे और गतिमान चीजे फिर भी रुक जाती है क्योंकि एक एक परमपिता परमेश्वर उसे रोकने की शक्ति रखता है। गति के ये नियम आप सिर्फ महसूस कर सकते है इनके कारण मानव समझ से परे और अनियंत्रित है". तो इसे आप विज्ञान नहीं भाववाद कहेंगे।
इसी प्रकार मानव समाज के सम्बन्ध में अगर हम ये कहे की "आदिमानव ने जब अपने अनुभव से ये जाना की कुछ जानवर हिंसक नहीं होते और उन्हें पाल कर उनका दोहन किया जा सकता है तो उसने जानवरों को पालना शुरू कर दिया और एक जगह टिक कर रहने लगा और खेती का विकास किया .या हम कहे की मानव समाज में पहले स्त्री पुरुष के सामूहिक शारीरिक सम्बन्ध होते थे लेकिन निजी संपत्ति के कारण जब उस संपत्ति के वारिसो का प्रशन आया तो समाज में एकल विवाह का प्रचलन शुरू हो गया जिसमे की निजी संपत्ति एक ही परिवार को जाने लगी .तब इसे हम मानव समाज की सभ्यता के विकास का विज्ञान कहते है।
तो मानव समाज की ये व्याख्या एक विज्ञान कहलाई जिसमे की सामाजिक बदलाव के कारणों को समाज में होने वाले चेंजेस और संघर्ष की ही परिणिति बताया गया, इस विज्ञान में कोई भी भाववादी तत्व नहीं था जैसे की किसी युग में कोई महापुरुष ने जन्म लिया और इसकी वजह से दुनिया चेज हो गयी, या जब जब इश्वर चाहता है दुनिया चेज होती रहती है आदि आदि।
सत्रहवी शताब्दी तक दुनिया के अलग अलग वैज्ञानिको और दार्शनिको ने दुनिया में मानव समाज की प्रगति की व्याख्यया तो करी लेकिन उनके हर दर्शन में भाववाद या ईश्वरवाद का समावेश था .लेकिन तभी दुनिया में एक ऐसा दार्शनिक आया जिसने इस दुनिया और मानव समाज में होने वाले परिवर्तनों को किसी तीसरी शक्ति (इश्वर) के द्वारा नियंत्रित करने या प्रभावित करने की पुरानी सब अवधारणाओ को सिरे से नकार दिया।
इस दार्शनिक ने भाववाद को अलग रखकर मानव समाज के विकास की व्याख्यया वहाँ से शुरू की जहा पर से डार्विन ने इसे छोड़ा था। इस दार्शनिक ने डार्विनवाद को अपना आधार बनाया और फिर वो मूल कारण खोज निकला जिससे की मानव समाज लगातार आगे बढ़ता रहता है और फिर एक स्टेज पर आकर समाज पूरी तरह एक नयी अवस्था में चला जाता है।
इस दार्शनिक वैज्ञानिक का नाम था "कार्ल मार्क्स ".
मार्क्स ने अपने दिए हुए तमाम दर्शनों और सिधान्तो से ये बताया की मानव समाज किस तरह कुछ नियमो के तहत हमेशा चेज होता रहता है .सरल शब्दो में अगर कहा जाये तो मार्क्स वाद वो विज्ञान है जिसके द्वारा ये समझा जा सक्त है कि मानव समाज कैसे एक अवस्था से दुसरी अवस्था में चला जाता है.
कैसे मानव समाज आदिमानव समाज से कबीलाई अवस्था में चला गया ? कैसे कबीलाई समाज सामंती समाज में तबदील हो गया ? ओर कैसे सामंती समाज आज के आधौगिक युग में आ गया ? ओर आगे ये समाज कहां जा रहा है या आने वाला मानव समाज कैसा होगा ?? मार्क्सवाद ये भी बताता है कि मानव समाज मे ये परिवर्तन होने के मुख्य कारण क्या होते है .
जैसे कि - वो क्या कारण थे कि आदिमानव समाज के लोगो ने कबीलाई सभ्यता को अपना लिया ओर खानाबदोष जीवन छोडकर एक जगह टिक कर रहना शुरू कर दिया या वो क्या कारण थे की आदिमानव समाज में स्त्री पुरुष में बहुविवाह सम्बन्ध कैसे एकल विवाह में चेंज हो गए।?? या वो क्या कारण था कि जनता ने सामंतवाद (राजा या राजशाही ) को खतम करके समाज को industrial स्टेज में ला धकेला.
मार्क्स ने मानव समाज में होने वाले उन मूलभूत चेंजेस को खोज निकाला जो कि समाज को एक स्टेज से दुसरी स्टेज में पहुचाने के लिये पूर्ण रूप से जिम्मेदार होते है.
जैसा कि पहले के दार्शनिको ने बताया था कि समाज को चेंज करने में किसी तिसरी शक्तिं का हाथ होता है या कोई महान इन्सान जनम लेता है ओर उसके प्रभाव में आकर समाज चेंज हो जाता
है.मार्क्स ने इस प्रकार कि अवैज्ञानिक दर्शन को अपने सिद्धान्तो से कंडम किया और बताया कि दुनिया में होने वाले सारे परिवर्तनो का कारण इसी दुनिया में मौजूद है और मानव समाज को कोई भी बाहर से नियंत्रण नही करता/कर सकता .
तो फिर मार्क्सवाद के अनुसार दुनिया में ऐसा क्या है जिससे ये समाज हमेशा चेंज होता रेहता है ........?क्रमश:....................
अच्छा लिखा है!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपके शब्द मेरे लिए बहुत बड़ी बात है .मैं आपके लेखन का बहुत बड़ा प्रशंशक हूँ ,,,कई सालो से .
विश्वनाथ जी,
जवाब देंहटाएंजल्दी में ब्लाग देखा है। अच्छा और उपयोगी लगा। आप इस पर गूगल कनेक्ट वाला फोलोवर विजेट लगाएँ। इस से पोस्ट प्रकाशित होते ही ब्लागर के माध्यम से फोलोवर्स को सूचना मिलेगी। एक ई-मेल सबस्क्रिप्शन का विजेट भी लगाएँ जिस से आप की पोस्ट ई मेल से कोई प्राप्त करना चाहे तो उस का उपयोग कर सके। शाम को पूरा ब्लाग देखूंगा। अभी अदालत के लिए निकलना है। और इस में से शब्द पुष्टिकरण हटा दें इस से बहुत लोग टिप्पणियाँ नहीं कर पाते हैं।
विश्वनाथ जी पहले तो आपको सादर नमस्कार करता हूँ,,
जवाब देंहटाएंबहुत कम लोग होते है अर्थात नगण्य जो आपके जैसी हिम्मत वाली विचारधारा रखते हैं।
जबरदस्त लेख हे आपके,,,सभी लेख मेने पढ़े हे,,में कौन हूं कहा से हु इसके लिए आप फुर्सत में 7742959973 पर कॉल या व्हाट्सएप्प msg क्र सकते हैं
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